मेरी खुशफहमी



मेरे मायने क्या हैं?  इस जिंदगी को जीने के मेरे मायने। लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे हैं इसके मायने। क्या सच में किसी का किसी के लिए मायने होना उतना जरूरी है जितना हम सोचते हैं,जितना मैं सोचता हूं।
समय बीतने के साथ मुझे ये महसूस होने लगा है कि मैंने अपने को दूसरों की नजर से देखने के ढंग पर ज्यादा ही सोच लिया है। शायद किसी को मेरे होने या ना होने, मेरे कुछ बोलने,मेरे साथ देने या साथ ना देने से इत्ता भी फर्क नहीं पड़ता है। जितना हम सोचते हैं,जितना मैं सोचता हूं। समझना मुश्किल है कि मुझे ये गलतफहमी है कब से। कब से मैं जी रहा था इस खुशफहमी में,कि मेरे ये करने से लोगों को क्या लगेगा,लोगों के जीवन पर क्या फर्क पड़ेगा?
यादों को अगर खंगालता हूं तो ये पाता हूं कि यादों की कसौटियों पर रिश्तों को कसने के बाद ही मेरे अंदर ये भाव जागा था। भाव कि मैं सोचूं, कि अब मैं समाजिक हूं,बड़ा हो गया हूं. लोगों के साथ रहता हूं, लोगों से बात करता हूं,तो लोग मुझे चाहते होंगे, लोग मेरे बारे में सोचते होंगे। ये मेरी शुद्ध गलतफहमी है,जिसे सिर्फ मैं ही दूर कर सकता हूं..क्योंकि खुशफहमी की दुनिया आपको यथार्थ से दूर ही ले जाती है। और यथार्थ का खुद के खुद बने रहने में बहुत बड़ा योगदान होता है। मुझे अब तेजी से यथार्थ की ओर लौटना है,जहां सिर्फ मैं सोचूं कि मैं क्या कर रहा हूं,किस ओर बढ़ रहा हूं,मेरे क्या करने से मैं कितना बदल रहा हूं। मेरे ये प्रयास शायद मुझे अच्छा इंसान बनने में मदद करेंगे।


टिप्पणियाँ

  1. wah wah tu yakinan bada ho gya hai aur theek sochne ki rah par sochne ke liye vivash kar diya hai tere dayre mai rehne walo ne

    जवाब देंहटाएं
  2. अपने बारे में इतना स्पष्ट लिखना वाकई हिम्मत का काम है। आफ्टरऑल यू आर गुड गोइंग ब्रो..........

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें