'हां शायद बदल गया हूं मैं'

सब कहते हैं बदल गया हूं मैं. हां शायद सही ही कहते हैं. थोड़ा मतलबी हो गया हूं, तभी तो अब रोज पैसों की खातिर ठीक वक्त पर घर से निकल जाता हूं और हर बार वो काम जो मेरे पेशे का हिस्सा है, उसे बिना देर किए पूरी फुर्ती से पूरा करने की कोशिश करता हूं. हर काम, मेरी पसंद का भी और .......! इच्छाओं को दबाना आ गया है मुझे. यार तुम सही ही कहते हो. शायद मैं बदल ही गया हूं.

अब वो छुटपन के दिनों की तरह देर तक बिस्तर पर पसरे रहना छोड़ दिया है. छुट्टी करने के लिए घर में बुखार का ड्रामा करना भी बंद कर दिया है, अब तो हल्के बुखार हो जाने पर खुद से सेटिंग करनी आ गई है. जाना जरूरी है, ये लाइन मां से छीन ली है मैंने, अब ये लाइन मां नहीं कहती. मैं कहता हूं मां से. तब, जब जब वो मुझसे कहती हैं,'थका सा लग रहा है, आज ऑफिस मत जा'. सही ही है. बदल गया हूं मैं. अब पापा से पैसे नहीं लेता हूं मैं, शायद इसीलिए अब बात भी कम ही करता हूं. पहले पिकनिक और वीडियो गेम की खातिर पैर दबाते हुए बात हो ही जाती थी. हालांकि इस बात में पापा के बड़े सवाल और मेरे छोटे सिर्फ हां या नहीं के जवाब होते थे. अब पैसों की जरूरत नहीं होती तो मैं पैरों पर चढ़कर पापा के पैर भी तो नहीं दबाता और न उनकी साइकिल के डंडे पर बैठकर स्कूल जाता हूं. बालों पर चिपकाकर पापा से कंघी भी तो नहीं करवाता अब मैं. सच्ची बात है.बदल ही गया हूं मैं.


पहले एक 'थोड़ी कम ठीक' नौकरी में था तो रोता रहता था. एक ब्रांड की खातिर, ज्यादा सैलेरी की खातिर, विजिटिंग कार्ड के लिए. इन इच्छाओं के लिए यार, दोस्त सबके आगे दिल की बात बेझिझक रखकर रोता ही तो रहता था. वक्त बदला, कुछ सपने पूरे हुए तो मैंने रोना बंद कर दिया तो मेरी रोती बातें भी कुछ कम हुईं और थोड़ा मुस्कुराना शुरू कर दिया. और अब मेरी रोई बातों को न पाकर, मेरी खुशियों की लालची मुस्कान को देखकर तुम कहते हो कि मैं बदल गया हूं. लगता है सही ही कहते हो.बदल गया हूं मैं.

अब अपने भाई से कपड़ों के लिए लड़ना छोड़ सा ही दिया है. मां मेरी तरफ मुंह करके मुझे सुलाएं, ये जिद्द भी तो नहीं करता हूं मैं. इक जमाने में स्कूल की वैन छूट जाने पर झूम सा जाया करता था लेकिन अब आॅफिस कैब को कभी खुद को बिना छोड़े जाने नहीं देता हूं. वक्त से पहले तैयार हो कैब में कैद होने का इंतजार करने लगा हूं मैं. बात तुम्हारी ठीक है दोस्त, मैं बदल गया हूं.

कितने ही दोस्तों से कहा था कि हम मिलते रहेंगे. अरे नहीं भूलूंगा यार, पर आज दोस्ती तो मेरे लिए फेसबुक तक ही सिमट कर रह गई है. छुट्टी वाले दिन दोस्तों से मिलने से अच्छा थकान उतारना लगता है. सोमवार से फिर आॅफिस जाना है न. कल की खातिर आज जीना भूल रहा हूं मैं. ये मेरा बदलना ही तो है.

एक लड़की जिससे हर रोज चार दफा कहा करता था, तेरे बिना जी नहीं पाऊंगा. पर उसके बिना कहां मर गया मैं. जी ही तो रहा हूं, मुस्कुरा रहा हूं. सच कहते हो बदल गया हूं मैं. अब तो मैं अपने लिखे से भी डरने लगा हूं. सोचता रहता हूं अच्छा लिखा है या नहीं. लौंडिया...साले.. खुलेआम लिखने से डरने लगा हूं. पढ़कर लोग क्या सोचेंगे ये भी मैं सोचने लगा हूं. अब बहुत कुछ लिख कर छिपाने लगा हूं. इमेज की चिंता सताने लगी है. इमेज होने की बेफिजूल झूठी खुशफहमी पाल ली है. बात एकदम ठीक कहते हो यार, अब मैं बदल ही गया हूं....


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें