सोनाली, जब जाना जादूगरी क्या चीज़ है


'कुछ होश नहीं रहता. कुछ ध्यान नहीं रहता. इंसान मोहब्बत में इंसान नहीं रहता.'

नसीरुद्दीन साहेब के इस शेर को कहने के बाद और जगजीत सिंह के 'होश वालों को खबर क्या...' शुरू करने के बीच एक खूबसूरत बात और थी.

माइक के सामने कंधों को हल्का सा झुकाकर बैक स्टेज पर खड़ी लड़की हँस रही थी. इस वाक्य को यूं भी लिखा जा सकता है कि एक इनडोर सेटअप पर आउटडोर पौधे का फूल खिलखिला रहा था. वो फूल जो सालों बाद भी हँसती है तो लगता है कोई ग्लेशियर कहीं नहीं पिघल रहा, कुदरत को कोई खतरा नहीं है. होता तो ये मुस्कान थोड़ी तो फीकी पड़ी होती.

ये वो लड़की थी, जिसका दुपट्टा रिक्शा से जाते हुए उड़ा था और अजय के गले जा पड़ा था और वो ऐसे चहका था जैसे ये वो पहला तौलिया है, जो किसी पैदा हुए गुलाबी बच्चे के आसपास लपेटा जाता है.

 'उनसे नज़रें क्या मिलीं. रोशन फिजाएं हो गईं. आज जाना प्यार की  जादूगरी क्या चीज़ है.'





''सीमा. Hi. मेरा नाम जो जानती हो तुम?
नहीं.
मैं..मैं अजय सिंह
मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था.
कहो.
यहां...कहीं और चलते न.
कहीं और क्यों..जो कहना है यहीं कह दो.
हम दोनों एक दूसरे को जानते तो हैं. नहीं...नहीं  मेरा मतलब है. हम दोनों एक दूसरे को ठीक से नहीं जानते. तो मैं तुमसे मिलना चाह रहा था.
बस.
बस?
मेरी बस आ गई.
सीमा...''

सरफरोश की सीमा की तब चली बस अब झटके वाले रास्तों पर आ गई है. जहां कुछ दिन वो झटके खाएगी लेकिन लौटकर आएगी. जैसे अपना इरफ़ान आएगा.

दूर जाने की बातों का फायदा कुछ रहे न रहे, ये ज़रूर रहता है कि पुरानी 'मुहब्बतें' कानों के पास आकर तेज़ सांसें लेने लगती हैं. और हम अपना डरपोक सा दिल लिए ये दुआएँ करने लगते हैं कि कुछ और रोज़ मेरी जान कुछ और रोज़.

वरना अब तक मैं भी कहां सोनाली को देखा करता था उन घटिया रिएलिटी शो में, जहां वो जज बनी फिरती है. खूबसूरत आंखों को जज करने का काम नहीं करना चाहिए. सुंदर आंखें फैसला सुनाने के लिए नहीं... फैसलों को समाने के लिए होती हैं. सोनाली ने भी कुछ फैसले समाए होंगे. कोई बीमारी सोनाली को मारे... ये 'हो नहीं सकता..हो नहीं सकता.'

इस दीवाने लड़के को ये समझ आए. तो क्या हुआ कि प्यार मुहब्बत से Still घबराए.  फिर भी अगर प्यार किया तो निभाना..

वैसे भी सोनाली रुकने और रोकने की कोशिश करती हुई अच्छी लगती है. जैसे मेजर साब में रुकी थी. क्योंकि उसने कानों में झुमकियों से छनती आवाज़ को सुना था...

'कहता है पल पल तुमसे होके दिल दीवाना.. एक पल भी जाना मुझसे दूर नहीं जाना...प्यार किया तो निभाना.'

और फिर यही वो सोनाली थी, जो 'कल हो न हो' में अपने अमन को रोकती है.

डॉक्टर बनी थी. बहुत सलाह देती थी. लेकिन इन सलाहों का अमन पर कोई असर नहीं हुआ. क्योंकि सोनाली लंबी थी. टाइम चाहिए था.  आज सलाहों पर है. सुनो, जियो हँसो, खुश रहो. क्या पता कल हो न हो. 'सच बताना. क्या वाकई वक्त नहीं है. क्या वाकई कुछ नहीं हो सकता.'

'दिल की बातों को होंठों से नहीं कहते
ये फसाना तो निगाहों से बयां होता है.'

'तुम हुस्नपरी, तुम जान-ए-जहां, तुम सबसे हसीन, सबसे जवां...क्या रंग खिला. क्या रूप सजा. मैंने  ही नहीं..दुनिया ने कहा. यूं खिली खिली यूं संवर..यू संवर संवर..तुम चली कहां...'

Don't Mind तुम कहीं नहीं चलीं... मैं जानता हूं.

और क्योंकि अपना गुलफाम हसन तुम्हारे सामने ही तो कहकर गया था,

''जज़्बात का रिश्ता है जो बाकी सब रिश्तों से बड़ा होता है. इन्हीं जज़्बात को ग़ज़ल की ज़बान में हम मुहब्बत कहते हैं.''

Don't Mind तुम कहीं नहीं जाओगी.

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