होने या न होने की कहानी वाया लाल धारियां



मिट्टी हल्की गीली रहे तो किसान धूप की परवाह नहीं करता. हल उठाकर जुट जाता है.

ऐसे ही कितनी ही बार गीली आंखों की परवाह नहीं की गई. किसी की आंखों की लाल धारियां दिखीं तो मन के भी कई मन हो गए. मन कि ये लाल धारियां दिखती रहें, फिर चाहें आंखों की क्यारियां लबलबाती रहें. लव में लब यही चाहते रहे.

चाहना कि रोएं तो इन आंखों के सामने. लालच कि आंखों की लाल धारियां भी दिखें और चुप कराने के लिए मैं भी रहूं. लेकिन ये सच रहा कि दोनों मन कभी पूरे नहीं हुए. एक मन बचा रहा, अपनी आंखों की लाल धारियों को खुद देखते हुए.

दीपिका पादुकोण इन आंखों की लाल धारियों की ब्रांड अबेंसडर लगती है. दीपिका के नाम के पीछे कितनी ही लड़कियों की आंखों की लाल धारियां देखी चाही जा सकती हैं.



जैसे वेद की तारा... 'मैंने उस दिन जो कहा, मैं वो सब वापस लेती हूं. वो रिंग कहां है वेद.'
जैसे राम की लीला...'ये लाल इश्क़, ये मलाल इश्क़, ये ऐब इश्क़, ये बैर इश्क़'
जैसे बाजीराव की मस्तानी... 'इस गुस्ताखी के लिए तुम अपनी जान गंवा सकती हो. परवाह नहीं.'
जैसे बनी की नैना... 'तुम क्यों नहीं समझते कि अगर मैं तुम्हारे साथ दो मिनट और रही. तो मुझे प्यार हो जाएगा.'
जैसे जय की मीरा... 'आइसक्रीम खाने के लिए बोलती थी, शादी के लिए भी तो बोल सकती थी न.'
जैसे गौतम की वेरोनिका... 'तुम सब  एक जैसे हो. स्पेशल होने का प्रेशर फील मत करो.'
जैसे राणा की पीकू...'ख्वाबों से रस्ते सजाने तो दो. यादों को दिल में बसाने तो दो. लम्हे गुज़र गए.'

चेहरे बदल गए. नहीं बदलीं तो आंखों की धारियां. दीपिका उन लड़कियों का बदला हुआ नाम है, जिनकी आंखों की लाल धारियां ख़ूबसूरत लगती हैं. अगर ब्लड मून सी लाल आंखें न हो जाएं तो ऐसी बेचारी लड़कियों को रोना बंद कर देना चाहिए. पर अगर इस बात पे रोना आ रहा है तो रो लें. आंखों का हिसाब कभी फिर होगा, फिलहाल भरे दिल का हिसाब हो जाए.

भरे दिल के साथ लोग कायरा हो जाते हैं और फिर सालों साल ऐसे तलाब में कैद हो जाते हैं, जो सूखा है. नमी दूर तक नहीं. इस बात से बेखबर कि कोई एक डियर...इस ज़िंदगी में आ सकता है. भरे दिल को खाली कर सकता है. लेकिन ये, हम लोग आगे बढ़ने से डरते हैं. घबराते हैं कि नई कुर्सी टूट न जाए.

पर कल हो न हो में जो शाहरुख ख़ान मरकर डियर ज़िंदगी के लिए पैदा हुआ था. वो भी तो कुछ बोला था,

'क्या तुमने कभी कुर्सी खरीदी है?  क्या तुमने दुकान में जाते ही पहली कुर्सी पसंद कर ली, खरीद ली? एक कुर्सी खरीदने से पहले हम कितनी सारी कुर्सियां देखते हैं, कितनी सारी कुर्सियां ट्राई करते हैं. Some Kursis are comfortable but looks like shit. others look nice but hard on the Bum. Now the process starts. कुर्सी आफ्टर, कुर्सी आफ्टर. How many kursis we check out before we find out that one Kursi. एक कुर्सी चुनने से पहले अगर हम इतनी सारी कुर्सी देखते हैं तो एक लाइफ पार्टनर चुनने से पहले हमें ऑप्शंस नहीं देखने चाहिए क्या?'

और जब लगे कि हां ठहरना है तो ठहर जाना चाहिए. कुर्सियां हर बार मिल जाएं, ये ज़रूरी तो नहीं.

रात की चुंबक
खींच सकती थी बहुत कुछ
मगर हर बार मैंने बिस्तर के पास
सिर्फ़ याद को आते देखा है

झुमकी उतरे कानों के साथ
ये दुनिया और सूनी लगती है.

स्वेटर उधेड़कर
बाल कटवाकर
नस के खून का फव्वारा फोड़कर
किसी रिश्ते के धागे को तोड़ने के कई तरीके थे.
धागा सुलझाने और उलझाने की ही तरह
उलझे धागे तोड़े जा सकते थे
सुलझे धागे छोड़ नहीं जा सकते हैं.

वरना अपना इम्तियाज किसी से कहलवाएगा. 'प्यार का प्रॉब्लम क्या है न...कि जब तक उसमें पागलपन न हो..वो प्यार ही नहीं. रखूं छुपाके सबसे ओ लैला...मांगू ज़माने से ओ मेरी लैला. कबसे तू मेरी है...कबसे मैं तेरा हूं लैला.' 'हाफिज़ हाफिज़ हो गया हाफिज़...काफिर काफिर बन गया काफिर... ' 

''तुझे क्या लगता है कि ये हम कर रहे हैं?
हमारी कहानी लिखी हुई है.''



और फिर भी ये कहानी अगर किसी लाल ही धारी वाली आंख से हल्का सा धुंधली हुई. मेरे...तेरे मौजूद न होने पर, तो...

आख़िर में बेचैनियां ही बताएंगी हमारे होने या ना होने की कहानी.

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