...Just like Robert and Francesca

'I get the distinct feeling that I'm lost.'

'मगर भटके तो याद आया...भटकना भी ज़रूरी था.'

रॉबर्ट भटका कहां था? वो तो पहुंचा था, जहां ज़िंदगी में एक बार पहुंचा जाता है. पर कितने कम लोग होंगे, जो किसी के भटकने पर रास्ता बताते हुए मंज़िल बन गए होंगे.

भटकने में अगर कोई मंज़िल मिले तो भटकने का डर नहीं रहता होगा.

चीज़ें सुंदर दिखें तो ट्रेन से उतर जाना चाहिए. जैसे रॉबर्ट उतरा था बारी में.



ब्रेड और सॉसेज डाइनिंग टेबल में रखते हुए भी प्यार के लिए वक़्त निकाला जा सकता है.

मगर ये आंखें कमबख्त जली ब्रेड को मक्खन लगाने में खर्च हुई जा रही हैं. सामने कोई खाने, पानी का न सही...मुहब्बत का भूखा, प्यासा है. इसकी बही खाता कौन लिखेगा?

जो आंखें ये देख सकती हैं, उन्हें वो आंखें न मिलीं. जो ये नहीं देख पाए, उन्हें सामने प्यासी, भूखी न जाने कितनी ही फ्रेंचेस्काएं हमेशा मिलीं. ये दुनियाभर की फ्रेंचेस्काएं सही रॉबर्ट को पाकर ट्रेन से उतरी नहीं.

रास्ते बताने की खूबसूरती कहीं रह गई. वो कंफ्यूज़न जो फ्रेंचेस्का के सीने और आंखों में थी. वो बस माथे पर उंगलियां फेरकर ही रुक गईं.

वो दौर भी खूब रहे होंगे. भटकने के दुख होते होंगे तो सुख भी. दिक्कत ये हुई कि अब रास्ता भटको तो 'सही' रास्ता बताने के लोग बढ़ गए. गूगल मैप वाली औरत ने लोगों को और ज़्यादा अकेले किया है.

क्या तुम इसको सेल्फ डिपेंडेंट कहोगे?
 उफ्फ, तुमने हमने आज़ादी वाले नारों को कैसे मतलब निकाला.



रास्ते बताने की कंफ्यूजन न होती तो रॉबर्ट को मेडिसन काउंटी के उस ब्रिज का रास्ता कौन दिखाता, जहां से उसकी राख उड़ी थी. उन हड्डियों, खाल की राख, जिसे हल्के अंधेरे में कभी किसी ने चूमा था.

'Things change. They always do. Law of nature.'

रात के अंधेरे में सफेद कुत्ता भी पीला नज़र आता है. अंधेरी सड़कों पर पीली रौशनी बहुत कुछ पीला कर देती है. मन गीला कर देती है.

मुहब्बत की कहानियों के इंटरवल जल्दी ख़त्म कहां होते हैं. द एंड कुछ देर से आता है. या शायद नहीं आात है.

वजह शायद वो दुनिया रही, जहां अब तक वो ही लोग मिले जिनको हमने चाहा और वो रॉबर्ट की लाइन को अपनाए चले आ रहे थे.

'Yes, I do have World of good friends and I love other people but no one in particular' Like Robert.'

फिर हम भी सब कहीं कभी-कभी रॉबर्ट होते चले गए. सबको प्यार किया लेकिन जहां रुककर कोई था...ठहरा सा. वहां से भाग लिए. न जाने किस बात की खोज में... आसमान देखते हुए दिल को ये कहते हुए कि तू अकेला नहीं, देख ऊपर शाम है..न चांद है..न सूरज... बस आसमां है और एक तू. और एक मै.



साथ जीने की बातों को और कदमों को रोका न करें. ये सोचकर ये कि ये होगा कोई रूटीन या इसमें क्या नया है? ये सवाल आए तो पूछके देख. 'मेडिसन काउंटी के ब्रिज' और नज़र के आसपास खड़े तमाम ब्रिजेस पर खड़े रॉबर्ट जवाब देंगे,

'If I've done anything to make you think that  what we have between us is nothing new for me...is just some routine then I do apologize.'

पहले सीन  में वो लोग अक्सर कम ही आए, जिनकी कहानी थी. फ़िल्म हो या ज़िंदगी. आगे की कहानी बढ़ने से पहले जो आए या आकर चले गए, वो किसी एक मुकम्मल कहानी के सपोर्टिंग कैरेक्टर थे और हम उन्हें वो ब्रिज समझते रहे जो एक कोने से दूसरे कोने पर ले जाते हैं. लेकिन दुनिया की सारी कहानियां वो पूरी करेंगे जो बीच में मिलेंगे और अंत तक रहेंगे. सांसों का रुकना, शरीरों का अलग होना बिछड़ना नहीं होता.


या हम रिचर्ड की गाड़ी में बैठी फ्रेंचेस्का की तरह हैं. जिसके हाथ में हैंडल तो है लेकिन वो किवांड़ नहीं खोल रही है. अपने घर से दूर उस घर में दाखिल नहीं होना चाह रही है, जो घर न होकर भी एक घर है. अपने घर से दूर दो लोगों के एकांत को खोज रहा ये घर इंडिकेटर जलाए बरसात में इंतज़ार कर रहा है कि कोई हैंडल खोलकर भीगता हुआ आएगा और बाजू की सीट पर बैठ जाएगा.

'Tell My why should I do? This kind of certainty comes but just once in a lifetime.' 

Don't lose us. Just like Robert and Francesca.

इंडिकेटर जल रहा है...

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