लोकसभा में मोदी जी बोले,
'हमारे देश में दो गाने प्रसिद्ध हुए थे. एक था बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई. दूसरा था महंगाई डायन खाए जात है. एक इंदिरा गांधी के टाइम का गाना है और एक रिमोट कंट्रोल वाली सरकार के टाइम का.'
सही बात गानों से ही मौजूदा सरकार की झलक मिलती है. गली बॉय के आज़ादी गाने का ओरिजनल वर्जन, जो कि मोदी सरकार के दौरान ही आया था वो कुछ यूं था.
'भुखमरी से.. आज़ादी
संघवाद से... आज़ादी
सामंतवाद से... आज़ादी
पूंजीवाद से... आज़ादी
ब्राह्मणवाद से... आज़ादी
मनुवाद से... आज़ादी
हम लेके रहेंगे... आज़ादी
तुम कुछ भी कर लो...'
'गली बॉय' में भी जो एडिटेड वर्जन आता है, उसमें भुखमरी, भेदभाव से आज़ादी रहती ही है.'
एक फ़िल्म और आई थी फन्ने खां. कहा गया कि गाने को बदला गया. पर असल गाना क्या था?
'खुदा तुम्हें प्रणाम है सादर
पर तून दी बस एक ही चादर
क्या ओढ़ें क्या बिछाएंगे
मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?
दो रोटी एक लंगोटी और वो भी छोटी
इसमें क्या बदन छिपाएंगे?
मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?
मैं खाली खाली था
मैं खाली खाली हूं
मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?'
मितरों, अब तनिक और पीछे चलते हैं. नहीं नहीं 70 साल पीछे नहीं. जस्ट आफ्टर 2014. फिल्म आई थी मुक्काबाज़. फिल्म के गाने से पहले... पहले सीन पर आते हैं.
सीन 1: गाय की खातिर एक भीड़ आती है. पीटकर चली जाती है. पीछे से आवाज़ आती है- भारत माता की जय.
सीन 2: डायलॉग था- देश बदल रहा है, ठाकुर अहिर का बर्तन उठा रहा है. 'पैंट खोलिए वरना अभी देश बदल देंगे.'
सीन कोलाज: बैकग्राउंड में शास्त्रीय संगीत. सेक्स के बाद बाबा रामदेव की आती हल्की सी आवाज़, 'ये आसन कई बार करें.' शिक्षित बेरोजगार. ऑन कैमरा- बोल नहीं मारेंगे अब कभी, बोल बे बोल. मारो इसको बोलता नहीं है कि नहीं मारेंगे.
रामदेव, गाय, भीड़तंत्र... मितरों पता है, ये किसके शासन की बात हो रही है. 'कहां पता है, नहीं पता है.'
बैक टू गाने. क्योंकि हम देश की बात थोड़ी कर रहे हैं. रविवार है. हेमामालिनी टीवी पर खड़ी हैं. रंगोली चल रहा है. आपके पसंदीदा गाने अब लोकसभा से सीधे आपके घरों तक...
'सूखी रोटी मुंह पे ठूंसे पे मुक्का मार दिए
हमरा बटुआ...हमसे चोरी उल्टा हमें उधार दिए
सपने कुतरे चूहे जैसे...जीवन चाटा दीमक जैसा
अरे घड़ियालों के आंसू तुम्हारे
बंदूक की नल्ली सामने रक्खे बोले नचके दिखा
रे काली स्याही मुंह पर पोते बोले सजके दिखा
अरे बहुत हुआ सम्मान...तुम्हारी ऐसी तैसी
बहुत हुआ सम्म...'
भोले एंटीना ठीक कर
सम्मान अटक रहा है
अच्छा दिन भटक रहा है...
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