बादलों और मैंने...बारी बारी कुछ चुना

बदले रंग वाले बादल अश्लील लगे, मैंने तस्वीरों को मिटाना और बादलों को बताना चुना... तुम्हारे संग धोखा हुआ है.

तस्वीरों ने मिटना और बादलों ने बरसना चुना. नीचे सड़क पर सोते लोगों ने भागकर फ्लाईओवर के नीचे जाना चुना. छतरी लेकर सब देखते कवियों ने वहीं खड़े खड़े 'इस टॉपिक पर' पहला स्टेंजा बुना. 

बरसता बादल, भीगती निंदिया
रोती आंखें, बदलती तकिया
गिरते लोग, उठती टीस
अकेलापन, सबसे रईस

घटिया लिखकर आत्महत्या करने के मामले सबसे कम सामने आए. अच्छा लिखने वालों के हिस्से 'क्या क्या लिखते रहते हो' सुनना आया. जब लिखने और सुनने से पेट भरा तो इन लोगों ने  सुसाइड लेटर लिखना चुना.

पढ़ने वालों ने फिर कभी नहीं कहा- 'क्या, क्या लिखते रहते हो.' या शायद लिखने वाले सुनने के लिए रह ही नहीं गए.



छोटी कोशिशों को देखना सबसे मुश्किल काम रहा. 19 का पहाड़ा 19 तिइंया 57 तक ही याद हो तो रुकने पर बच्चे को तमाचा नहीं लगाना चाहिए. उसे कागज पेन देकर समझा देना चाहिए कि एक तरफ विषम संख्याएं और दूसरी तरफ उल्टी गिनती लिखो...पहाड़ा पूरा हो जाएगा. विषम परिस्थितियों को सम बनाना बचपन में सिखाया जाता तो न जाने कितनी सारी तकियाएं सुबह सूखी मिलतीं.

आंधियों के थमने पर जब-जब ठहरना चुना तो लगा कि हल्की हवा आएगी. कपड़ों और खुद पर जमी धूल खुद-ब-खुद हट जाएगी. आंधियों को लगा कि मैंने चुनौती देना चुना. लिहाज़ा आंधियों ने लौटना चुना.

बदले रंग वाले बादलों ने खुद को मिटाकर मुझे ये बताना चुना... तुम्हारे संग धोखा हुआ है.

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें