अपनों की वीरता और 'मरणोपरांत' अभ्यास...

 कुछ प्रैक्टिस आपको परफेक्ट नहीं बनातीं. मगर परफेक्ट होना हर बार ज़रूरी नहीं, ये ज़रूर बतला जाती हैं.

कितने ही अभ्यास. डैकोरम मेंटेन करने की कोशिशें. परंपराएं और किसी अपने का ज़िक्र. 

ऐसा सम्मान, जिसे कोई परिवार तब तो कतई नहीं लेना चाहेगा जब किसी अपने के नाम के आगे 'मरणोपरांत' कहा जाए. 

मरणोपरांत कितना भारी शब्द है. प्रतियोगिता दर्पण किताब और सम्मान समारोह के अलावा  कभी सुनाई नहीं देता. लिखा भी कम जाता है.


आम लोगों से दूर ये शब्द जब अचानक किसी अपने के नाम के साथ सुनाई देता होगा तो क्या बीतती होगी. बिलाल, सूद, गुलाम मुस्तफा, नासिर अहमद समेत कई नाम और साथ चिपका मरणोपरांत शब्द.

सम्मान समारोह की भरी महफिल में एकदम अकेली खड़ी मांएं, पत्नियां. पद के साथ लिए जाते नामों को सुनते हुए शायद प्यार से पुकारे गए नामों को याद करती होंगी. घर के नाम घरवालों के साथ रह गए. बाहर वाला नाम बाहर वाले इंसान समेत ले गए. 

सम्मान समारोह में उद्घोषक की डिटेलिंग सुनते डैकोरम के साथ खड़े परिवार वाले कितनी मुश्किल से सब सुन पाते होंगे. या कहीं पीछे की तरफ लौट जाते होंगे. जहां शहीद हो चुका कोई अपना ज़िंदा दिख रहा होगा. हँसता हुआ. खेलता हुआ. कुछ खाता हुआ या पत्नी, प्रेमिका के बदन पर बने टैटू पर उंगली छुआता हुआ.



'सीने पर दुश्मन की गोली खाई.' सुनकर उस मां की सीना छिल सा जाता होगा, जिसने नाक बहने पर बेटे के सीने पर विक्स या बाम लगाया होगा. ये कहकर कि सुबह तक सब ठीक हो जाएगा. पर अब सब ठीक हो सके, वो सुबह कभी नहीं आ सकेगी. 

'शानदार वीरता का प्रदर्शन दिखाकर लक्षित भवन के भीतर घुसे.' सुनते वक्त उन औरतों के दिमाग में क्या चल रहा होता होगा, जो घर पर किसी का इंतज़ार कर रही थीं. 

उन अपनों का घर आना याद आता होगा या पूरा मंज़र अनुशासन में लिपटी, टपटपाती आंखों को दिखता होगा.

'हथगोले से हमला करते हुए गोलियों की बौछार...' ये लाइन कहने वाले उद्घोषक को क्या कभी पता चल पाएगा कि उसकी संवेदनशीलता, सस्पेंस थ्रिलर वाक्यों तक पहुंचने की तीव्रता और कमाल का उच्चारण हॉल के बीच में हाथ जोड़े खड़ी औरत को कहां ले जाकर छोड़े दे रहा होगा?

वीरगति को प्राप्त हुए लोगों के पीछे छूटे लोगों को कुछ प्राप्त नहीं होता. 


शहीद कैप्टेन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया था. विक्रम के पिता और भाई जब सम्मान लेकर कार से लौट रहे थे तो पिता अचानक रोने लगे.  बोले- ''अगर इस अवॉर्ड को विक्रम ने अपने हाथों से लिया होता तो हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात होती."

शहीदों के परिवार तालियों की आवाज़ को पीछे छोड़कर अपने घरों को लौट जाएंगे. मुआवज़ों से दूर, अपनों के नाम पर राजनीतिक दलों को चुनाव जीतते हुए देखते ये लोग कभी किसी से नहीं बोलेंगे- तुम देशद्रोही हो. कभी किसी से नहीं बताएंगे कि देशभक्ति की परिभाषा क्या होती है

क्योंकि देशभक्ति बताई या बेची नहीं जाती है. ये आंखों में देखी जाती है जो कितने ही अभ्यास करवाने के बाद भी छलक जाती हैं. 

भरी महफिल में बैठी भीड़ को छोड़कर उस अपने के पास चली जाती हैं जो दुनिया के लिए जिस वजह से वीर है वही वजह सबसे बड़ी पीर है. 

टिप्पणियाँ

  1. कितना मुश्किल होता होगा उन आंसुओं को रोक पाना, जिसके लिए अभ्यास कराया जाता होगा, ये तालियों की गड़गड़ाहट कानों में चुभती होगी, ये भीड़ बुरी लगती होगी, जब कोई अपना न दिखता होगा...

    अच्छा लिखा है आपने

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  2. कई बार जब आप कुछ बहुत अच्छा लिखा पड़ते हो तो दोबारा पढ़ना चाहते हो। पर कम ही बार ऐसा होता जब बहुत ज्यादा अच्छा लिखा गया हो मगर आप मे उसको दोबरा पड़ने की हिम्मत न बची हो।
    हर शब्द जैसे कोई जख्म दे रहा हो। और शायद मैं उन महान परिवारों के दुःख को महसूस कर रहा था , या जो उन पर उस वक़्त बीत रही होगी उसका एक नन्हा सा अंश छू कर गया होगा। और सच मे वो एहसास बहुत से नमी दे के जाता है आँखों मे।
    ये एहसास दिल के शुक्रिया , विकास। और लाखों सलाम उन माता पिता, बीवी बच्चों को जिन्होंने अपनो को खोया ताकि हम अपनो के पास रह सकें।

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