आस्था का महाकुम्भ... लम्हे जो कुछ अलग लगे

मौनी  अमावस्या को इलाहाबाद में हुई दुर्घटना के बाद मेरा ध्यान इलाहाबाद में चल रहे कुम्भ की तरफ गया फिर मन में ख्याल आया कि शायद मुझे भी इस महाकुम्भ का भ्रमण कर लेना चाहिए। शनिवार और  रविवार का इन्तेजार किया , कैमरा उठाया, ट्रेन में बैठा और चल पड़ा इलाहाबाद की ओर ....
इलाहाबाद आने के बाद नहाने के लिए नदी किनारे जाने की जरुरत नहीं पड़ी, बारिश के मौसम में दोपहर के 3 बजे भी सावन की शाम जैसी ही लग रही थी। 


 खुले तंदूर की गर्म भीगी रोटी। त्रिवेणी घाट में   आग पर रोटी के बनते बनते  बारिश से अपनी रोटी को बचाते  हुए,  जिस थाली में रोटियां शौक  से खाने की सोची थी उसी की छतरी बनाना पड़ा।

 बात हौसले की हैं और साथ में आस्था- वाह  "सोने पर सुहागा" 



पत्रकारों के भविष्य और अधिकारों को लेकर सम्मेलन हो रहा था।




 मीडिया एथिक्स की असली क्लासेज इस सम्मेलन के बाहर  से मैं बहुत मजे से सुन रहा था ..........











जो बिकता हैं वही दिखता हैं।




 छोटे  दुकानदार से लेकर बड़े व्यापारी  भी छाए कुंभ में छाए रहे।
11 से 2 1 रुपये देकर आप अपना भविष्य भी जन सकते हैं, वो सच  होगा या झूठ ये तो आप को जब तक पता चलेगा तब तक ये महाकुम्भ ख़त्म  हो चुकेगा। 
 धार्मिक किताबें जो आपको ऐसी वैदिक दुनिया में ले जाएगी जो आपके लिए स्वर्ग का रास्ता साफ़ कर देगी।
ऊपर से मिले आशीर्वाद नीचे से मिले मर्दाना शक्ति .... विज्ञापन के इस भ्रामक संसार में यहाँ सिर्फ टारगेट ऑडियंस  मायने रखती हैं।





बाबा जी ने बिना पैसे लिए फोटो खीचने की इजाज़त दी वरना ज्यादातर बाबा फोटो खीचने के बदले 1100 रुपये मांगने से नहीं चुकें। 
दम मारो दम बाबा आपको लगभग हर जगह मिल जायेंगे।



अगर कोई लड़की इनसे बीडी या हुक्का मांगे तो ये चाहे कही से भी लाये पर ताव से धुंआ उड़ने में आपसे प्रतिस्पर्धा करने से नहीं चुकेंगे।

 अमर भारतीय जी, इन्होने पिछले 4 0  सालों से अपना हाथ नीचे  नहीं किया हैं , 
उँगलियों के आगे के नाखून भी काफी बड़े बड़े हो गए हैं।

इनके पास देशी से लेकर विदेशी भक्तों की  भीड़ लगी रहती हैं।






भैया क्या फोटो अख़बार में छपेगी ??? सुन्दर आये तभी छापना वरना रील मत धुलवाना।।।।






 बीकानेर वाला के खाने के स्टाल से काफी दूर शायद कुछ उम्मीद इस बच्ची के मन में  हैं जो पिज़्ज़ा तो नहीं खाना चाहती पर कुछ  खाने को मिल जाये। 



 कांटो पर लेटे बाबा जी ने आगे से फोटो खीचने नहीं दी तो हमे भी मज़बूरी में पीछे से ही फोटो लेकर काम चलाना  पड़ा।
सपनो की इस दुनिया में इस बच्चे की गाड़ी मस्ती से बेफिक्र चल रही हैं क्योंकि शायद तेल की कीमतों के बढ़ने का इस पर कोई असर नहीं होने वाला ....... 



पानी अन्दर बाबा बाहर  
पानी के बरसने से बड़े बड़े पंडालो का शाहीपन धुल गया।










ऐसा मेला जिसपर पूरी दुनिया की नजर रहती हैं। 
काश कोई नजर ऐसी भी होती जो इस मजबूरी को दूर कर पाती।




यहाँ हॉट डॉग ( गरम कुत्ता ) भी आपको हर कोने में मिल रहा था, पश्चिम पूर्व का ये मिलन सबसे ज्यादा दिलचस्प था।





नागा बाबा के करतबों ने संगम के घाट  किनारे एक अच्छी खासी भीड़ अपनी ओर  खींच रखी थी ये बाबा लोग अपने करतब दिखा कर अपनी अलग तरह की ताकतों को दिखा रहे थे।


 जिनकी उम्र अभी खेलने कूदने की हैं शायद किन्ही कारणों से इन्होने अपना खेल अब धरम को बना लिया हैं, जिसमे निश्चित रूप से ये अभिनेता  का किरदार निभा कर खुद को अलग समझ के ही खुश हो रहे हैं।



 विश्वशांति के लिए पूजा कर रहे ये लोग शायद 
हथियारों की हो रही खरीद फरोक्त से अनजान हैं


संगम की ये शाम दिन भर की थकावट भुलाने के लिए काफी हैं ऐसा नज़ारा बहुत कम मौकों पर ही देखने को मिलता हैं। 






 गोल गोल घुमती इस दुनिया में शायद हम भी इसी की तरह होते जा रहे हैं जितना तेजी से भागेंगे उतना तेजी से घूमेंगे और लोगों का ध्यान अपनी तरफ खीचेंगे ....................आस्था के इस महामेले में भक्तो से लेकर बड़े बड़े उद्योग घरानों का ध्यान अपनी और खींचा। कोई यहाँ अपने पाप धोने आया था, कोई भक्ति वश, कोई धन कामने के उद्देश्य से तो कोई मज़बूरी वश।

पर हम गए इस इन सभी के मेले में  आने के कारणों को  अपनी नजरो और कैमरा में कैद करने के 
मकसद से ... मज़ा तो बहुत आया पर कुछ मामलो में बुरा भी लगा जिसके कुछ पहलु मैंने रखने की
 कोशिश भी की  हैं।  इस उम्मीद में आस्था का ये महाकुम्भ जब अगली बार आये तो हमारी निगाहें सिर्फ नदी किनारे नहाते हुए लोगों तक, बाबाओ के प्रवचन तक, बड़ी से छोटी दुकानों तक  ना टिकी रहे।































टिप्पणियाँ

  1. एक बेहद ही अच्छी कोशिश विकास
    अच्छा लगा....संभावानाओं को बनाए रखो..शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  2. आप जैसे क्लास में बोलते हैं वैसे ही ये तस्वीरें भी बोल रही हैं। शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. मैंने ढूंढ कर ये पढ़ा , मैं जानना चाहता था कि आप शुरुआत में कैसे लिखते थे। आज सुबह से हीं आपके ब्लॉग पर हूँ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें