खुला खत: बिलावल भाई कुछ लेते क्यों नहीं


क्यूटी पाई बिलावल,
अगर तुम आज शाम पोगो टीवी नहीं देख रहे होगे. तो पक्का ही मेरे खत लिखने की वजह समझ रहे होगे. चलो बिना ज्यादा घुमाए साफ-साफ बताता हूं. खुशखबरी है. तुम्हारे लिए नहीं, हमारे लिए.  हम यानी भारतीयों के लिए. भारत ने एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता है. 'तो मैं क्या करुं' मत बोलो, मजेदार बात ये है कि पाकिस्तान से जीता है.


कुछ दिन पहले तुम्हारा बचकाना बयान सुना था. आज मुझे उस बयान की बहुत याद आ रही है, जिसमें तुम कश्मीर का एक-एक इंच छीन लेंगे कह रहे थे. लेकिन यार एक बात बताओ, तुम्हारे 11 आदमी मिलकर हमसे एक गोल्ड मेडल तो छीन नहीं पाए. ख्वाब हैं तुम्हारे जन्नत कश्मीर को लेने के. हां, ये माना कि हार-जीत खेल का हिस्सा है. पर ये जीत तुम्हें भारत की तरफ से एक छोटी सी टोकन मनी है. जिससे तुम हमारे बूते का अंदाजा लगा सकते हो.

पाकिस्तान के चंपूगिरी के दावेदार नंबर 1


खैर, अभी तुम्हारी उम्र कम है. तुम्हारे कार्टून चैनल्स को देखते हुए इस बयान को हम इतना सीरियसली लिया भी नहीं था. लेकिन एक चीज के लिए तुम्हारा शुक्रिया. यार तुमने सोशल मीडिया के लिए हमें एकदम चटकीला मसाला दिया. अगर कभी कैंडी क्रश खेलने से फुर्सत मिले तो हमारी फेसबुक टाइमलाइन पर आ जाना. वादा है कि बिना आग के धुंआ छोड़ते हुए लौटोगे.

अब बात तुम्हारे देश के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की. 'मुझसे क्यों बोल रहे हो, मुझे खेलने जाना है'...अरे बिलावल, खेल वाली बातें आज तुम्हारे मुंह से अच्छी नहीं लग रही हैं. तुम्हारे देश में जो खेलते हैं, उनसे तो आज खेला नहीं गया. ऐसे में तुम्हारा खेलना कुछ यूं है जैसे हिना रब्बानी की शादी में तुम्हारा सोफे लगाना.  खैर दुखती रग पर हाथ रखना हमारी फितरत नहीं.

हां, तो हम बात कर रहे थे, नवाज शरीफ जी की.  हम यहां गूगल का 'युसूफ ओए- यारा बल्लू' वाला विज्ञापन देखकर आंखों में आंसू लिए फेसबुक स्टेट्स डाल रहे हैं और शरीफ साहब, सारी शराफत भूलकर संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठा रहे हैं. हमें मुद्दा उठाने से गुरेज नहीं, बस उसकी टाइमिंग और जगह से थोड़ी हैरानी हुई. जन्नत में जब जल प्रलय आया हुआ है. ऐसे वक्त में उन्हें उस जन्नत में जनमत संग्रह की लग रही थी.

दुखद परिस्थितियों में तो हमारे यहां भी विपक्ष-सरकार मिलकर काम करती है लेकिन नवाज साहब! जिस मंच का इस्तेमाल वो अपने देश में खेलों को बढ़ावा देने और बाढ़ग्रस्त इलाकों में मदद के लिए कर सकते थे. उन्होंने उस मंच पर बेवजह कश्मीर का मुद्दा उठाया. बिलावल यार सुनो, तुम थोड़ा बड़े हो चले हो, जिम्मेदारी समझो. आगे से जब नवाज शरीफ सूट-पेंट पहनकर देश से बाहर जाएं, तो उन्हें दवा देकर भेजा करो. हर जगह उल्टी करना अच्छी बात नहीं.

बिलावल और नवाज साहब, अमन की आशा हमने जरूर आपसे लगाई है. लेकिन ये ध्यान रहे कि हम आज भी वही भारतीय हैं. जिन्होंने आपको तिरपाल मुहैया कराया था. आपके लिए तो हमारे सन्नी देओल ही काफी हैं. जितना ध्यान आप लोग कश्मीर और दाउद पर देते हो, कभी उतना ध्यान अपने देश के बाकी खेलों पर भी दिया करो. क्रिकेट से ही दुनिया नहीं चलती है. हमारे यहां देखिए, तीन बच्चों की मां मैरीकॉम गोल्ड ले आईं. लेकिन तुम्हारे 11 मुसटंडे तुम्हें एक गोल्ड नहीं जिता पाए. हो गया न लोल.

तुम्हें ये खत पक्का, बेफिजूल लग रहा होगा. लेकिन ये नवाज और तुम्हारे बड़बोले पन से तो ठीक ही है. मेरे सरहदी भाई, इस खत का उद्देश्य पाकिस्तान को नीचा दिखाना नहीं है (और कित्ता नीचे भेजें तुम्हें). इसका उद्देश्य बस इतना है कि मन एक्राग करके आप लोग सीजफायर उल्लंघन, आईएसआई, दाउद और हमारे कश्मीर पर देते हो. अगर उतना ध्यान अपने देश में खेले जाने वाले खेलों और खिलाड़ियों की परवरिश पर दिया होता. तो आज तुम्हारी तरफ से भी सुनहरी सुगंध आ रही होती. बिलावल अब पाकिस्तान को सिर्फ पढ़ाई पर ही नहीं, खेलों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. बाकी भारत को हराने के लिए संघर्ष करो, अब तो पाकिस्तानी हॉकी टीम भी तुम्हारे साथ है. बाकी भारत जब आओगे तो हमारी जीत की खुशी में काजू-कत्ली या पांच रुपये वाली डेयरी मिल्क जरूरी पक्का खिलाएंगे.
तुम्हारा शुभचिंतक
एक भारतीय

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