यादों, दोस्ती की कई चुस्कियां चखाती है 'कुल्फी और कैप्युचीनो'

आशीष चौधरी की किताब 'कुल्फी और कैप्युचीनो' का बुक रिव्यू
'यादें ऑक्सीजन से भी ज्यादा जरूरी होती हैं जीने के लिए.' बचपन से लेकर जवानी तक की छोटी मगर मीठी यादें अगर आज भी भरी भीड़ में आपके चेहरे पर मुस्कान ला देती हैं तो खुश हो जाइए. 'कुल्फी और कैप्युचीनो' किताब आपको यादों की टोकरी से बहुत सारी यादें चुनने का मौका देगी. आशीष चौधरी ने अपने पहले ही नॉवेल 'कुल्फी और कैप्युचीनो' में जिंदगी के उन तमाम पहलुओं को छुआ है, जो जब गुजर रहे होते हैं, तब शायद इतना फील गुड नहीं दे पाते हैं, जितना सालों बाद उन्हें याद करने पर अच्छा लगता है.


'कुल्फी और कैप्युचीनो' नॉवेल कहानी है अनुराग मेहता और उसकी जिंदगी से जुड़े उन तमाम लोगों की, जिनके साथ अनुराग की जिंदगी का एक न एक किस्सा जुड़ा हुआ है. कहानी शुरू होती है अनुराग के ग्रेजुएट होने के बाद. जिसके बाद हर पढ़ाकू या पढ़ाकू जैसे दिखने वाले को 'करना क्या चाहते हो' टाइप सवाल से जूझना होता है. अनुराग एमबीए के एग्जाम कैट की तैयारी करने की मंशा के साथ जयपुर आता है. जयपुर पहुंचने से पहले बस में अनुराग की मुलाकात नेहा से होती है. नेहा की वाइट ब्यूटीफुल स्कीन और खुशबू से अनुराग के अंदर के आशिक के जज्बात उबाले मारने लगते हैं. यही कारवां किताब में धीरे-धीरे आगे बढ़ता है और इश्क के छठे मुकाम तक पहुंचता भी है.

जयपुर में अनुराग के तीन अच्छे दोस्त बनते हैं. नेहा, प्रतीक और भूपी. इसके अलावा अंकुर, गरिमा, कोमल, सोमदेव अंकल, मसानी, तस्नीम मैडम, नेहा की स्ट्रिक्ट बुआ, इरशाद, होस्टल का बूढ़ा मालिक जैसे किरदार भी हैं, जो कैप्युचीनो के झाग की तरह कहानी में उठते हैं, स्वाद देते हैं और निकल जाते हैं. कैट की तैयारी के बीच अनुराग और उसके दोस्तों का रीजनिंग के सवालों से बेहाल दिल पार्टनर की तलाश में जुट जाता है. कोमल अनुराग के सोमदेव अंकल की खूबसूरत बेटी है. अनुराग के मुताबिक, नेहा की तरह कोमल की स्कीन भी वाइट ब्यूटीफुल होती है. जिसे देखकर अनुराग कंफ्यूज रहता है कि इज शी बेटर देन नेहा. दो खूबसूरत विकल्पों के बीच आंख और मन की मीठी लड़ाई पूरी कहानी में अनुराग लड़ता रहता है. पर इस बीच उसे पता रहता है कि वो प्यार नेहा से ही करता है.

दिल में सरसराहट पैदा करने वाली मुलाकातों के बीच अनुराग और नेहा एक दूसरे के करीब आते हैं. नेहा की पसंद कैप्युचीनो और अनुराग की पसंद कुल्फी का एक-दूसरे की पसंद से बदल जाने की कहानी किताब को दिलचस्प बनाती है. प्रतीक अपने पिता से अलग रहता है और इस वजह से उनसे दिखावटी नफरत करता है. भूपी आर्थिक रूप से कमजोर होता है पर इस वजह से अनुराग और प्रतीक उससे दूर जाने की बजाय करीब ही आते हैं. आशीष चौधरी ने प्रतीक, नेहा, कोमल और अनुराग को कहानी के आखिर में जिस तरह से जोड़ा है, वो काबिले तारीफ है. गंभीर से गंभीर बातों के बीच अनुराग का मन उससे बात करता रहता है. जिसे किताब में ठीक उसी तरह लिख भी दिया गया है. अनुराग के मन की बातें पढ़ते हुए आपको अपने की मन की वो तमाम बातें याद आएंगी जो आप अकसर खुद से करते रहते हैं. कहानी में अनुराग अपने मन में उधेड़बुन में लगा रहता और उसके मन की यही बातें लगातार पाठक के चेहरे पर मुस्कान लाने में सफल साबित होते हैं.

परिवारिक रिश्तों की मिठास
ऐसा नहीं है कि कुल्फी और कैप्युचीनो सिर्फ बॉयफ्रेंड, गर्लफेंड, दोस्तों तक ही सीमित है. किताब के ज्यादातर किरदार अपने परिवार के प्रति बेहद गंभीर होते हैं. हालांकि इसका इजहार वो कुछ खास मौकों पर ही करते हैं लेकिन उस मौकों पर आशीष चौधरी ने अपने सेंस ऑफ ह्यूमर का जबरदस्त इस्तेमाल किया है. कहानी के एक हिस्से में अनुराग हमेशा सवाल पूछने वाले पिता को कुछ यूं याद करता है,' मैं जानता हूं कि वो मुझे इतना ही मिस करते होंगे. फाइव पीसेज ऑफ चंपा माइक्रोमेन दे सेंट विद मी बीकॉज दे नो देयर सन कांट वाश अंडरगारमेंट रेग्युलरली.'

क्यों चखें कुल्फी और कैप्युचीनो
अगर आप खुद को आज के जमाने का मानते हैं और ऐसे उपन्यास पढ़ने से बोरियत होती है, जिसमें कुछ चटपटा होने में 40 से 50 पेज पढ़ने पलटने का इंतजार करना पड़ता है. पहली, दूसरी, तीसरी और लगभग हर नजर में किसी से आपको प्यार हुआ है. मोबाइल में आपने भी अपनी प्रेमी या प्रेमिका का नंबर सबसे ऊपर लाने के लिए नाम के आगे कभी A लगाया हो. तो आप बिना देरी के 'कुल्फी एंड कैप्युचीनो' उठा लें. किताब की चुस्कियां आपके बच्चे दिल को मीठा सा स्वाद देगे.

'कुल्फी और कैप्युचीनो' में क्या है कड़वा
कहानी की शुरुआत करते हुए आशीष छोटी-छोटी बातों का जिक्र करके थोड़ा बोर करते हैं. जिससे शुरुआत के पन्ने पढ़कर किताब को पढ़ने का फैसला करने वाले पाठक किताब को वापस रख सकता है. हालांकि अनुराग के जयपुर की बस में बैठते ही कहानी भी अपनी रफ्तार पकड़ लेती है. किताब की भाषा भी वही है, जिसमें हम और आप अपने दोस्तों से बात करते हैं. इंग्लिश के समझ में आने वाले शब्द हैं लेकिन आशीष ने कहानी में कुछ जगह ऐसे शब्द इस्तेमाल किए हैं जो समझ में तो आते हैं पर कहानी में घुसा पाठक बीएमडब्लयू कार से अचानक कूदकर टैम्पो में पहुंच जाता है. इसके अलावा जिन लोगों को किताब से किसी दार्शनिक ज्ञान की चाहत होती है और हिंदी नॉवेल्स में इंग्लिश के शब्द उन्हें पाप समान लगते हैं, उन्हें इस नॉवेल को हाथ लगाने से बचना चाहिए.

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