खुला खत: किशोर दा आपके बिना जी नहीं सकते हम

आभास कुमार गांगुली. अच्छा किया जो यह नाम बदल लिया. सच बोल रहा हूं. बहुत बूढ़ा साउंड करता है. कहां आभास और कहां किशोर. किशोर नाम रखते ही मानो जैसे आपको शरारत करने की आजादी मिल गई थी. किशोर...नाम सुनते ही लगता है कि जैसे किसी बच्चे से बात करनी है. किशोर से बच्चे और दा से बड़े. दोनों का डेडली कॉम्बिनेशन हो गया आपके नाम में.

किशोर दा, जिंदा आदमी को खत लिखने में जो सुख है. वो सुख पोस्टकार्ड लेकर या मेलबॉक्स के जरिए किसी चलते-फिरते मर चुके इंसान को खत लिखने में नहीं है. सब कहते हैं आप 27 साल पहले जन्नतनशीं हो गए. पर मुझे तो ऐसा नहीं लगता. मुझे तो आप आज भी जिंदा लगते हैं. पापा के पुराने टेप रिकॉर्डर में, कम्प्यूटर और फोन की मेमरी में. आए दिन यहां वहां आते-जाते आप दिख ही तो जाते हैं. अपनी वही बनारसी पान वाली सुरीली आवाज लिए. जो लोगों को बताने के लिए काफी होती है कि ऐ बांगड़ू कहां जाते हो अकेले-अकेले. जिंदगी का मजा तो चखते जाओ. चलते- फिरता तो हर कोई है, पर आपके गानों ने हमें जिंदगी की कठिनाइयों में दौड़ना सिखाया.

हैप्पी बर्थडे किशोर दा

किशोर दा, आपके किस्से बहुत मशहूर हैं. पता नहीं सच हैं कि झूठ. आपके ये किस्से बहुत कुछ सिखाते भी हैं, थोड़ा आपके बारे में सोचने को मजबूर भी करते हैं. पैसा पेट के लिए जरूरी है हमें मालूम है पर आप तो हम सभी के गुरू निकले. सुना है, बहुत से कंजूस डॉयरेक्टरों की आपने बहुत क्लास लगाई थी. वो जब एक मौके पर फीस पूरी न चुकाई जाने पर आधा मेकअप लगाए, आप ये कहते हुए बाहर आ गए थे कि ‘आधा पैसा, आधा मेकअप. हां एक वो भी तो था, ‘हे तलवार दे दे मेरे आठ हजार..’कहते हुए आपने प्रोड्यूसर आरसी तलवार के घर के बाहर ही आप चिल्लाने लगते थे. हाहहा कमाल थे आप. लोअर मिडिल क्लास और बीपीएल वाले ऐसा करें तो समझ आता है पर आप भी. किशोर दा, ऐसे बहुत से सवाल उठे होंगे उस वक्त, पर मैं समझ सकता हूं आज जब मैं खुद 30 दिन नौकरी करने के बाद मोबाइल में बैंक के उस एक मीठे से सैलेरी मैसेज का इंतजार करता हूं. जो मुझे इस बात का सुकून पहुंचाते है कि हां मैंने काम किया है. बड़ा आदमी अगर पैसे के लिए झिझक न करे तो यह हम जैसे छोटे आदमियों को उनके हक के लिए लड़ने की प्रेरणा देता है. आपको कई बार अपनी जिद की कीमत भी चुकानी पड़ी. इमरजेंसी में कांग्रेस के लिए गाना गाने से इंकार करने पर आपके गाने दूरदर्शन और आल इंडिया रेडियो पर बैन भी तो कर दिए गए थे. बुरा लगा होगा न, शायद उस वक्त आपसे ज्यादा आपके दीवानों को बुरा लगा होगा.

किशोर दा, अच्छा आप जहां भी हैं वहीं से एक बात बताइए. गानों में इतनी शरारत आप लाते कहां से थे. पड़ोसन फिल्म में सुनील दत्त साहब की आड़ में आपने महमूद साहब को जो लगाई थी. आज भी पेट दर्द हो जाता है हंसते-हंसते. महमूद साहब ऊपर बात करते हैं न आपसे, कि अभी तक उस बात को लेकर नाराज हैं. किशोर दा, एक बात की आप गारंटी ले लीजिए. आज भी अकेले जिंदगी बिता रहे छोकरे अपने पड़ोस की खिड़कियों को उम्मीद भरी निगाहों से देखते होंगे. क्योंकि कहीं न कहीं उनके मन में आपकी गाई वो उम्मीद जगी हुई है कि मेरी सामने वाली खिड़की में भी कोई चांद का टुकड़ा दिख जाए.

मस्ती भरे गानों के साथ आप सीरियस गाने भी गा ले गए. ये बड़ा सही काम कर गए. बहुत बार देखा है अंकल टाइप लोगों को, ‘हमें तुमसे प्यार कितना, चिंगारी कोई भड़के, दिल क्या करे जब किसी से..’ गाते हुए नाराज आंटियों को फिर से पटाते हैं. सुकून तो तब मिलता है किशोर दा, जब आंटियां हंसते हुए मान भी जाती हैं.

यह जादू सिर्फ आप ही कर सकते थे. पर मजे की बात तो ये है कि आपका जादू आज भी वैसा ही बना हुआ है जैसा आप स्टूडियों से गाकर निकले थे. एकदम फ्रेश. किशोर दा, इस बीच कुछ नए लड़के आए तो हैं अपने नए तरीकों के गाने लेकर. पर सब डीजे और डिस्कों में बिजी हैं. ऐसे में छत, बॉलकनी, पार्क, मेट्रो और शहर के अकेलेपन में आप ही तो हैं जो बारिश की बूंदों, सूरज की संतरी रोशनी में हमें जीना और प्यार करना सीखा रहे हैं. हमें हम बनाए रख रहे हैं. किशोर दा, आप जो अपनी आवाज छोड़कर नीचे गए हैं. उसके लिए शुक्रिया. अभी आपको कुछ (सैकड़ों) साल और जीना होगा. हम लोग जरा जिंदगी के रस को समझना शुरू कर दें तब तक. फिलहाल के लिए जन्मदिन की बधाई. जिंदा ही रहिएगा हमेशा वाया अपनी आवाज टू हमारे दिल. हैप्पी बर्थडे किशोर दा.

विद लव- हम सब

किशोर दा के बर्थडे 4 अगस्त को लिखने की कोशिश की.

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