'ताकि मुस्कियाने में एक फर्क कायम रहे'

ये चश्मा किसी दिन तोड़कर फेंक दूंगा. साफ दिखने की ख्वाहिश लिए चश्मे की दोस्ती कम ही जमती है. बंद आंखों से ज्यादा साफ देख पाता हूं. अक्सर. ऊपरी दिखावा मुझमें थकावट भरने लगा है. झूठी मुस्कान लिए गाल के साथ दिमाग की नसें भी झिझकने चिपकने लगी हैं. मुस्कियाते वक्त सूखे चिपके से होंठों की तरह.

तुम सब करना. कहना. और जैसे तुम रहते हो भीड़ में. अकेले होने पर खुद से जब सवाल आए मन में कहीं, तो खुद से बिन झिझके पूछ बैठना,  'दोनों में से तुम कौन हो?' और जब लगे कि तुम अकेले होने पर वो हो ही नहीं, जो भीड़ के साथ होने पर होते हो. तो एक बार नजर उठा लेना. ग़र इसमें तकलीफ न हो ज्यादा तुम्हें.

फिर उठी आंखों से आना थोड़ा धीरे, पर जल्दी मेरी तरफ. ताकि बाहरी दुनिया में भी कोई कभी तुम्हें गिरता हुआ न देख पाए. उठी आंखें पर झुकी नजर लिए चले आना. सब बताने की कोशिश में जब तुम 'मैं... मेरी... क्या बोलूं.. सॉरी' के बीच कहीं अटके हो. मैं तभी बस मुस्कुरा दूंगा. तुम अपनी जिंदा लाश लेकर लौट जाना. समझना मैंने तुम्हें मुआफ किया. और बस अपने जलने या दफन होने का इंतजार करना.  लाश को एक लंबे वक्त तक ज़िंदगी पर ढोते हुए.

और हां, भूले से भी मेरे तुम सब पर किए यकीन को याद करने की कोशिश न करना. तुम्हारी जिंदा लाश तुम्हें ही गंधाने लगेगी. दुनिया को वजह बताने के कोने और कच्चे ड्राफ्ट्स तुम्हें नहीं मिल पाएंगे. और जब सांस और मन का दम घुटने लगे. जैसे शमशान के आगे से गुजरने पर आती है जीभ पर थूक इकट्ठा करती एक गंदी बदबू. और डर को हाथ के किसी बड़े पंखे सा हम दूर खेदने लगते हैं, नुचे जाने के डर से. तुम सांस रोककर हवा बदलने का इंतजार करना.

मेरा कोई खत तुम लोगों के हाथ नहीं लगेगा. या लगेगा भी तो तुम पढ़ न पाओगे, मैं कुछ ऐसा लिखूंगा. ग़र फिर भी तुमने पढ़ लिया जो खत. वादा समझना इसे मेरा आखिरी. वो खत कई खत पैदा करेगा. जो तुम सब लिखके फाड़ दोगे. या किसी को दिखा भी पाए तो यकीन करो. वो खत तुम और तुम्हारे राजदार के रिश्ते को खत्म कर देगा. मेरा खत तुम सबको मार देगा. मैं जहां भी होऊंगा. बस मुस्कुरा दूंगा. तुम सब अपनी जिंदा लाश लेकर वहीं से लौट जाना. जैसे मैं चला आता और जाता था. रोज. और तुम सब मुस्कियाते रहते थे. हंसने की कोशिश में अपने आप को ही नोचकर खाते हुए. 

मैं इस चश्मे को तोड़कर फेंक दूंगा. ताकि धुंधला सब कुछ दिखे. किताब के एक पेज से दूसरे पेज के बीच गिरते शब्द भी. और गिरते हुए तुम और मैं भी. यूं दूर का पास महज देख भर लेने का ढोंग अब मैं खुद को नहीं देना चाहता हूं. तुम सब की तरह. ताकि जब तुम मुस्कियाओ या मैं मुस्कियाऊं. एक फर्क कायम रहे.

'कमजोर हवा में जब
तुम उनसे कहोगे
बाहर बहुत कुछ बदल देने वाली
भीतर की बात

ठीक उसी पल
वो तुमको झड़क देंगे
'ना' कह हंसने लगेंगे जोर से
चीख भर लेने वाला जोर
क्योंकि बहुत शुरू से ही
ये तुम्हारी ख्वाहिशों की नहीं
उनके गुरूर के जमने की उथल पुथल  थी
शासक के क्रूर होने की पहली काबिलियत
उन्हें तुमसे मिली थी
बस इत्ता याद रखना
जी भर मुस्कुराने के दिखावे के दौरान!

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