डेटलॉग: कन्या मिलन समारोह की गुस्ताखियां माफ हों

एक कदम चला तो दो इंच से कबूतर का सफेद कैचअप सिर पर गिरते गिरते बचा. 

अगले ही पल दूसरे पेड़ पर बैठा कबूतर लीक हो गया. एक इंच से फिरोज़ी रंग की लिनेन शर्ट और खोपड़ी बाल-बाल बची. नौकरी का इंटरव्यू नहीं था. लेकिन उससे कम भी नहीं था. इंग्लिश में फर्स्ट डेट थी. हिंदी में कन्या विशेष के साथ प्रथम मिलन समारोह.

छोटे में टोनी नाम के कुत्ते काट न लें तो यही कहता था- टोनी नो. कनाट प्लेस में जगह तय हुई- टोनीनो कैफे. कटहा कुत्ता याद आ गया.

ऊपर गया तो प्रेस करे कपड़ों वाले कैफे कर्मचारियों ने इंग्लिश में सवाल किया. मैं बस इंग्लिश को पकड़ पाया. सवाल को नहीं. फिर भी मैंने हैलो कहा और 'अभी आता हूं' कहकर वहां से चला गया. शहरों में होटल इंसान की ख्वाहिशों की तरह होते हैं. रौशनियों की सारी चमक बाहर होती है. अंदर ज़ीरो वॉट का बल्ब जल रहा होता है.

बाहर आया, तब तक कन्या सीढ़ियां चढ़ रही थी. जी करा बोलूं- चलो हनुमान मंदिर के बाहर बैठाकर कचौड़ी खिलाऊंगा. फिर लगा- चुप रह,  वहां जाकर बैठा तो लिनेन शर्ट और कन्या दोनों सिकुड़ने लगेंगी.


कन्या का इंग्लिश एक्सेंट मारु है. टोनीनो की स्पेलिंग भी उसी ने लिखकर भेजी थी, तब जाकर गूगल मैप पर कॉपी पेस्ट कर पाया था. अर्थात धीमी बत्ती वाले कैफे में पहुंच पाया था. छोटे में जिन घरों में स्टैबलाइज़र नहीं होता था और वोल्टेज कम रहता,  मैं उन्हें ग़रीब समझता था. इन महंगे होटलों और कैफे में मामला उलटा है. कहीं भी बत्ती कम दिखाई दे तो समझ लो आगे अंधा अमीर मोड़ है. कन्या ने टेबल फोर टू कहा. ये इकलौता इंग्लिश वाक्य था, जिसका अनुवाद करके समझने में मुझे सबसे कम वक्त लगा.

क्या लोगे?
जी करा कह दूं- मन तो चुम्मा का है लेकिन पहली बार मिली हो तो जो मन करे मंगा लो.
मैंने लाइन एडिट की. चुम्मा को हाइड किया,  'जो मन करे मंगा लो' वाली लाइन को प्रोवाइड किया.

उसने इंग्लिश में जो बोला,  वो सामने आने पर पिज्जा और कॉफी थी. लेकिन इस तक पहुंचने के रास्ते में जो इंग्लिश थी. उसका अनुवाद और घटनास्थल का चश्मदीद होने के नाते मंज़रकशी कुछ यूं है.

गाढ़ा दूध फेंट कर चॉकलेट मिलाई गई थी. झाग ऊपर तक था.  ऑर्डर देते वक्त कोल्ड वर्ड भी कहा गया था.   लेकिन कोल्ड के साथ जो दिख रहा था,  वो वॉर नहीं वीर्य सा था,  सफेद. साथ में रखी थी एक लंबी चम्मच. इतनी लंबी चार चम्मच मिला दी जाएं तो एक चार फुट की लड़की तैयार हो जाए. ऊपर से उठी हुई.

दूसरा जो आया. वो डॉमिनोज़ के 69 वाले पिज्जा का पेरिस वाला भाई था. बढ़िया कटी फूल गोभी. काली रंग की छोटी बालियां,  इंग्लिश में बोलें तो ऑलिव. अन्नानास भी था शायद. पिज्जा का तलुआ इतना पतला था कि मेरी स्वागत की बनियान उससे ज़्यादा मोटी है.

तीसरा आया पानी. चौथा,  पांचवां छठा भी आता लेकिन तब तक मैनू मैन्यू का राइट साइड दिख गया. 485 से नीचे कुछ नहीं था. ज़िंदगी में खुशियां बनी रहें, इसलिए लेफ्ट की तरफ रहना चाहिए. राइट भयभीत करता है. लिहाज़ा मैंने कहा- अरे मैं आने से पहले कुछ कुछ खा चुका हूं. इतना काफी है.

घंटा कुछ खा चुका हूं. घंटों से खाना बंद कर दिया था कि कहीं कन्या से मिलते वक्त लैटरिंग न लगने लगे. भूख ऐसी थी कि कभी भी गैस बनकर दिमाग में चढ़ जाती. पर कंट्रोल भोले कंट्रोल. तेजी से पिज्जे की स्लाइस उठाएंगे...हम अपनी भूख खुद मिटाएंगे.

छुटपन से लेकर कॉलेज तक जाते हुए 800 रुपये बटुए में होना यशराज फिल्म का हीरो होने के बराबर था. यानी 800 रुपये हैं तो सब काम हो जाएगा. 40 का डोसा, 18 की हाफ प्लेट चाउमीन, 10 की पेप्सी और पांच वाली चॉकलेट. उल्टा पैसा बचेगा. मैं बचपन में रहा और आज भी 800 रुपये लेकर घर से निकल पड़ा.

सोचा  इज्ज़त लुटी तो डेबिट कार्ड जाटों के लौंडों की तरह निकलेगा और 'रुक मैं देखता हूं स्यालों को' वाले भाव से मेरी इज्ज़त बचा लेगा.

एक्सट्रा चीज़ कितना खतरनाक होता है- ये हाथ से खाने वाले से कोई पूछे. हमने पिज्जे की स्लाइस उठाई,  मुंह में घुसाई. लेकिन पिज्जे से निकली चीज़ लार की तरह मुंह से हटी ही नहीं. कन्या मेरा मुंह देख रही थी और मैं चीज़. जैसे तैसे मैंने चीज़ का खतना किया और स्लाइस को गटक लिया. फिर इंतज़ार किया कि अब इसको देखता हूं,  कैसे खाती है. कन्या ने स्लाइस उठाई. चीज़ ऐसी संस्कारी बनकर उसके मुंह में दाखिल हुई,  जैसे नई बहू चावल के लोटे पर लात मारकर गृह प्रवेश करती है, वैसे. किसी सरकारी आयोजन के भाषण की तरह सफलतापूर्वक सम्पन्न.

अब चीज़ से निपटने की बारी मेरी थी. मैंने गोलगप्पों की प्रैक्टिस याद की. मुंह की खालों को एक्सरसाइज़ करवाई और एक पूरी स्लाइस निवाला बनाकर एक बार में मुंह के अंदर. चीज़ भी क्या जाने मैं क्या चीज हूं.

दिमाग तब तक ये कैलकुलेशन कर रहा था कि जीएसटी जोड़कर बिल कितना होगा. तभी एक पूर्व प्रेमिका का सालों बाद मैसेज आ गया. जैसे वो कहीं से देख रही हो और कह रही हो कि नकटे अभी रिश्ते को मरे हुए दस साल भी नहीं बीते हैं और तू नई जगह मुंह मारने आ गया. जबकि वो ये सच न जानती है कि ये कन्या फिलहाल सिर्फ एक दोस्त है और मैं जैसे पिज्जा खा रहा हूं... ये दोस्त ही रखने वाली है.

एक्स के मैसेज आने पर तीन चीजें होती हैं.
दिल तेज़ धड़कने लगता है.
मन उदास, आंखें रुआसी हो जाती हैं.
पेट गुड़गुड़ाने लगता है और पेशाब,  टट्टी जाकर ही संतोष मिलता है.


मैं वॉशरूम चला गया. दरवाज़े के पीछे लिखा था- वॉच योर स्टेपलगा इसको कैसे पता चला कि मैं लाइफ में स्टेप बढ़ा रहा हूं. जल्दी से चश्मा हटाकर आंखों का कीचड़ साफ किया और मुस्कुरा कर 'टेबल फोर टू'  की कुर्सी नंबर टू पर बैठ गया.


और बताओ.
बस वही सब.
और बताओ.
बस वही सब.


मुझे इस पल कोई नहीं चाहिए था. न सामने कोई. न भीतर कोई. एकांत चाहिए था. लगा कि इन कम रौशनी वाले बल्बों को फोड़ दूं. एकदम अंधेरा हो जाए और कोई गाना लगा दूं. फिर खुद को चार चाटे लगाऊं कि कोई वजह है नहीं, फिर भी क्यों ये नौटंकी. चाहिए क्या तुझे?


मैं खाने के बिल में बल्ब तोड़ने का बिल जोड़ने की बात सोचने लगा और ख्यालों से 'टेबल फोर टू' में लौट आया.

कन्या अच्छी दोस्त हो सकती है. प्रेम शायद अब जीवन में चाहिए नहीं. फिर भी बिल तो फटेगा विकास बाबू. लिहाज़ा कन्या ने बिल लाने के लिए कहा. 800 रुपये की नोटें चीखने लगीं- आज तेरी लाज हम न बचा पाएंगे क्यूटिए,  भुगत. लेकिन जाटों का लौंडा बटुए में सो रहा था. बिल आया और नामुराद कैफे कर्मचारी ने बिल मेरी तरफ बढ़ा दिया. जी करा- बोल दूं,  जा भाई एक दिन तेरा भी कटेगा. लेकिन तब तक कन्या ने बिल वाली फाइल में अपने साथ लाई प्लास्टिक मनी रख दी. इस प्लास्टिक मनी को देख मेरे जाटों के लौंडे का दिल धड़कने लगा. और मेरा ज़्यादा बिल के डर से तेज धड़कता दिल बम धमाके के बाद सामान्य होती ज़िंदगी की तरह सामान्य हो गया. कन्या इस दरियादिली के बाद अब अच्छी दोस्त है. जी करा गले लगकर बोल दूं- हैप्पी महिला दिवस. यही है बराबरी. शाबाश. मोर पावर टू यू.

लेकिन मैंने औपचारिकताएं करनी सालों पहले बंद कर दी. मैंने शुक्रिया नहीं कहा. लेकिन मुस्कुराकर अपनी नई दोस्त को इंग्लिश में नाइस टू मीट यू कहा. इंग्लिश टाइप कैफों में सौंफ और मिश्री नहीं मिलती है. कटा नींबू और पानी भर कटोरी मिलती है. मन करे तो नींबू पानी बनाकर पेट साफ करो वरना उसी में उंगलियां डुबाकर नाखूनों से काला मैल निकालो.

बाहर आया तो उसी पेड़ पर अब एक कबूतर बैठा था. पतझड़ में बहुत कुछ छट जाता है. एकांत एकदम साफ दिखता है. कबूतर अकेला था. गर्दन को इधर उधर उचकाता, मचकाता हुआ.

मैं लगातार ऊपर देखता रहा. दूसरी डाल पर जैसे ही कोई दूसरी चिड़िया आकर बैठी... वैसे ही कबूतर उड़ गया. जैसे कबूतर को उड़ने के लिए चिड़िया का इंतज़ार था कि कोई आए और मैं जाऊं. कबूतर अब अकेले रहना चाहता होगा इसलिए एकांत ख़त्म होते ही उड़ गया.

कहां गया?
इस सवाल का जवाब उड़ते कबूतर के पास भी नहीं है...

टिप्पणियाँ

  1. बड़े होटलों की बाहरी चकाचौंध के भीतर तक पहुंचे हो। सुंदर है। चीज़ को बताया कि क्या चीज हो। सुंदर है। फलसफे बीच-बीच में छोड़े हो। सुंदर है। बाकी सब भोले है। हर हर महादेव...

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  2. बड़े होटलों की बाहरी चकाचौंध के भीतर तक पहुंचे हो। सुंदर है। चीज़ को बताया कि क्या चीज हो। सुंदर है। फलसफे बीच-बीच में छोड़े हो। सुंदर है। बाकी सब भोले है। हर हर महादेव...

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  3. शहरों में होटल इंसान की ख्वाहिशों की तरह होते हैं. रौशनियों की सारी चमक बाहर होती है. अंदर ज़ीरो वॉट का बल्ब जल रहा होता है.....

    शहरों के होटल ही नहीं, इंसान भी अंदर से ज़ीरो वॉट का बल्ब ही लगते हैं.

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  6. सुंदर बहुत दिनो बाद वापसी जैसा कुछ लगा

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