अमिताभ बच्चन: 'सदी के महानायक' के वजूद की तलाश...


आप किनके साथ हैं?

''मैं हूँ उनके साथ खड़ी, जो सीधी रखते अपनी रीढ़/ निर्भय होकर घोषित करते, जो अपने विचार/ नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता/ जो अपने कंधों से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते हैं/ जिनको ये अवकाश नहीं है, देखें कब तारे अनुकूल/ मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़.''

हरिवंशराय बच्चन की इस कविता को शायद इस दुनिया में जिस एक शख्स ने सबसे कम अपनाया है, दुनिया ने उन अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक कह पलकों पर सजाया है. लेकिन जब इस कलाकार से कुछ अहम मुद्दों पर सवाल पूछे जाते हैं, तब कुछ लोगों को अमिताभ 'सीधी रीढ़' के साथ नज़र नहीं आते हैं.

वो खुद के अमिताभ होने का सबूत देते हैं और सवालों से कन्नी काटते हुए निकल लेते हैं. सैकड़ों किरदार निभाने वाले एक्टर अमिताभ बच्चन का अपना किरदार क्या है? इस सवाल का जवाब कई मर्तबा धुंधला होकर मिलता है.

ये काल्पनिक किरदारों  को यादगार बना चुके और अपने किरदार को खो चुके अमिताभ बच्चन की कहानी है, जिन्हें रियल लाइफ के असल सवालों पर गुस्सा नहीं.. 'घिन आती है.'




तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं. फ़िल्म इंडस्ट्री के कुछ लोग इस पर खुलकर बोल रहे हैं. लेकिन 'पिंक' फ़िल्म प्रमोशन के वक़्त 'नो मीन्स नो' यानी 'ना मतलब ना' का नारा बुलंद करने वाले अमिताभ बच्चन अब चुप्पी बरतना चाहते हैं.

इस बारे में सवाल पूछने पर वो कहते हैं, ''ना मेरा नाम नाना पाटेकर है. ना मेरा नाम तनुश्री दत्ता है. कैसे उत्तर दूं आपके सवाल का?''

अमिताभ सवालों के उत्तर नहीं देना चाहते हैं. लेकिन वो ट्विटर पर ट्वीट नंबर लिखते हुए जवाब न देने का बचाव करना चाहते हैं. 'कैसे उत्तर दूं आपके सवाल का'  कहने के बाद वो एक ट्वीट करते हैं.


बिग बी जानते हैं कि कोई 'कांड' हो गया है. विचार न देना जिल्द भरी चादर में छिपना है. विचार देने से कष्ट हो सकता है.

'ठग्स ऑफ हिंदुस्तान' के मुख्य कलाकार अमिताभ बच्चन ने जो ट्वीट किया है, उसे पढ़ें तो लगता है कि 'अमर अकबर एंथनी' फ़िल्म के मशहूर सीन की तरह वो ये ट्वीट आईने के सामने खड़े होकर शायद खुद ही से कह रहे हैं,

''कांड हो गया. विचार चाहते हो तुम हमसे? क्यूँ? अपने विचार देने में कष्ट हो रहा तुमसे. ढक लेते हो अपने को जिल्द भरी चादर से तुम. पुस्तकी पन्नों को कब तक छुपा के रखोगे तुम. समझने वाले समझ गए हैं जो ना समझे वो..."

जो फिर भी न समझें वो अनाड़ी हैं या शायद अमिताभ बच्चन हैं.


एक्टर अमिताभ बच्चन से जवाब क्यों चाहिए?


फ़िल्म पत्रकार अनुपमा चोपड़ा को हाल ही में दिए इंटरव्यू में एक्टर पंकज त्रिपाठी एक ईमानदार सी बात कहते हैं.

वो कहते हैं, ''आपका सच्चा होना बेहद ज़रूरी है. ज़रूरी नहीं है कि सारे अच्छे अभिनेता अच्छे इंसान भी हों. एक्टिंग में इंटेलिजेंट हो जाइए लेकिन अगर आप इसे जीवन में ले आए तो गलत होगा. आपको ज़िंदगी में सच्चा होना होगा. वरना आप भटकने लगते हैं.''

इसके बावजूद भी सवाल पूछा जा सकता है कि अमिताभ ही क्यों कहें? उनका कुछ कहना इतना अहम क्यों? एक कलाकार का काम एक्टिंग करना है न कि राष्ट्रीय मुद्दों पर राय रखना.


इस सवाल का जवाब अमिताभ बच्चन की खुद बोयी वो फसल है, जिसे वो अपनी फ़िल्मों के हिसाब से आदर्श समाज चाहने वाले लोगों के नैनों में बोते रहे हैं. फ़िल्म 'पिंक' रिलीज़ होने वाली थी तो अराध्या और नव्या को सोशल मीडिया पर खुला ख़त लिखते हैं.


अमिताभ ख़त में प्यारी और ज़रूरी बातें कहते हैं, ''अपने फैसले खुद लेना. किसी को यह तय करने का मौका मत देना कि तुम्हारी स्कर्ट की लम्बाई तुम्हारे करेक्टर का पैमाना है. यह दुनिया औरतों के लिए बेहद कठिन है, लेकिन मुझे विश्वास है कि तुम जैसी महिलाएं ही इन चीजों को बदल सकती हैं.''

अमिताभ मानते हैं कि ये दुनिया औरतों के लिए बेहद कठिन है. लेकिन जब एक औरत असल ज़िंदगी में कठिनाई से गुज़र रही है तो वो कहते हैं, ''मैं कैसे जवाब दूं आपके सवालों का, मेरा नाम तनुश्री नहीं.''

अमिताभ न तनुश्री हुए और न नाना पाटेकर...वो बस एक पर्दे के कलाकार रह गए. जो सिर्फ़ पर्दे के भीतर ही हीरो रहना चाहता है. बाहर वो अमिताभ बच्चन रहना चाहते हैं. जिनके बारे में गूगल करें तो सिर्फ़ अच्छी-अच्छी बातें नज़र आती हैं. 'अमिताभ बच्चन का विवादित बयान' जैसी ख़बरें इंटरनेट पर सर्च करने पर कम ही मिलती हैं.

'घिन आती है...'


ऐसा ही एक उदाहरण कठुआ गैंगरेप केस के बाद का है.


एक फ़िल्म प्रमोशन के दौरान कठुआ केस पर पूछा गया तो तब 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के ब्रॉन्ड अंबेसडर अमिताभ बच्चन बोले, ''इस विषय पर बात करने से घिन आ रही है, इस विषय को न उछाला जाए. इस बारे में बात करना भयानक है.''


फ़िल्मों में 'बोल वचन' से दर्शकों का दिल जीतने वाले बड़े बच्चन को घिन आती है. वो अपनी ही लिखी बात को भूल जाते हैं, ''ये दुनिया औरतों के लिए बेहद कठिन है.'' चूंकि इस दुनिया में जो 'सदी के महानायक' हैं, उन्हें गुस्सा ज़ाहिर करने से भी घिन आती है.


हालांकि इस 'घिन' के बाद '102 नॉट आउट' फ़िल्म प्रमोशन से जुड़े सवालों का जवाब वो हँसते हुए देते हैं तो मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करती हैं कि अमिताभ बच्चन यूं न होते तो कैसे होते...

'मुझे जो सही लगता है मैं करता हूं. फिर चाहे वो भगवान के ख़िलाफ़ हो. क़ानून के ख़िलाफ़ हो या पूरे सिस्टम के ख़िलाफ़.'

'सरकार' फ़िल्म में अमिताभ बच्चन का डॉयलॉग मेरी तन्हाई को हिंदी सिनेमा का सबसे झूठा डॉयलॉग लगने लगता है.



एक आम आदमी या कलाकार भूखा रहे, इससे दुखदायी कुछ नहीं. मगर फ़िल्मों में हैप्पी एंडिंग देखने वाला मन अगर ये कल्पना करे कि जिनके पेट भरे हुए हैं वो रीढ़ सीधी करके खाली पेट वालों के लिए आवाज़ उठाएं तो क्या ये ग़लत है?

अमिताभ बच्चन की फ़िल्मों का फैन रहा 'नटवरलाल' मन जवाब देगा- अरे इसके बिना जीना भी कोई जीना हुआ लल्लू!

लेकिन पर्दे के बाहर अमिताभ बच्चन क्या करते रहे हैं, इस पर एक नज़र:

राजीव गांधी: उस दौर की राजनीति देख चुके लोग मानते हैं कि गांधी परिवार से अमिताभ बच्चन की काफी नज़दीकियां रही थीं. लेकिन बोफोर्स में नाम आते ही अमिताभ बच्चन धीरे-धीरे किनारे होते चले गए. सालों बाद अमिताभ बच्चन इस मामले में क्लीन चिट भी मिली. लेकिन इस चिट को मिलने से पहले ही अमिताभ क्लीन होने की ख्वाहिश लिए मुश्किल दौर में गांधी परिवार को छोड़ किनारे हो गए.


अमर सिंह: कभी खुशी, कभी गम. अमिताभ से अमर सिंह के रिश्ते कितने अच्छे थे, इससे लगभग हर कोई वाकिफ़ होगा. लेकिन जब अमर सिंह के ख़राब दिन आए तो अमिताभ बच्चन 'डॉन' हो गए. अमर सिंह का उनको पकड़ना मुश्किल ही नहीं...नामुमकिन हो गया.

यूपी में दम, जुर्म कम?:  2007 का विधानसभा चुनाव और मुलायम सिंह यादव का प्रचार अभियान. अमिताभ अपनी दमदार आवाज़ में कहते हैं- यूपी में है दम, क्योंकि यहां जुर्म है कम.

लोगों ने सवाल किया कि ये बात किस आधार पर कह रहे हैं. क्योंकि अपराध तब भी कमी नहीं था, ख़ासतौर पर यूपी में.


नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक़, 2007 में पूरे देश में अपहरण के जितने केस दर्ज हुए, उसमें अकेले उत्तर प्रदेश से 16.5 फ़ीसदी केस थे. यौन शोषण के मामले में यूपी दूसरे नंबर पर था. देश में यौन उत्पीड़न के केसों में यूपी की हिस्सेदारी 26 फ़ीसदी. अपराध के पूरे देश जो मामले दर्ज हुए थे, उसमें अकेले यूपी से 21 हजार मामले दर्ज हुए थे.


लेकिन अमिताभ बच्चन बस कलाकारी कर रहे थे. तथ्यों और उनकी बात का लोगों पर क्या असर होगा, इस बात की फ़िक्र फीस ले रहे अमिताभ के मन ने शायद नहीं की होगी. या फिर बाराबंकी में मिली ज़मीन और किसान बने अमिताभ ने शायद खुद से कहा हो- इस पर बात नहीं करते हैं, घिन आएगी!


अमिताभ अंबेसडर बच्चन: अमिताभ एक अच्छे ब्रांड अंबेसडर हैं. वो जैसे किसी फ़िल्म की कहानी देखते हैं, संभवत: ठीक वैसे ही बस उत्पाद के विज्ञापन से मिलने वाली रकम देखते हैं. आगे या पीछे कुछ कौन देखे? फिर चाहे वो गुजरात टूरिज्म का विज्ञापन करना हो और फ़िल्म पा का गुजरात में टैक्स फ्री हो जाना हो.

लेकिन क्या अमिताभ बस पैसे के लिए विज्ञापन करते हैं? जवाब अमिताभ देते हैं, ''अगर उत्पाद को मैं पसंद करता हूं या इस्तेमाल करता हूं, तो मैं उसका प्रचार करूंगा.'' आए रोज़ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले केआरके को अमिताभ पसंद करते होंगे, ये बात ही थोड़ी चौंकाती है. क्योंकि वो कई मौकों पर केआरके का प्रचार भी कर चुके हैं और स्वागत सत्कार भी.


हिंदी भाषी, आस्थावान: अमिताभ बच्चन 'आस्तिक' इंसान हैं, जिसका पूरा सम्मान करना चाहिए. फिर चाहे अपने बेटे अभिषेक की शादी से पहले किसी पेड़ के चक्कर लगवाने जैसी बात ही क्यों न हो.


लेकिन उत्तर प्रदेश के लोगों और ख़ासकर इलाहाबाद के लोगों के 'बच्चन भइया' जब महाराष्ट्र में संबंध बनाए रखने के लिए हिंदी भाषी होने पर माफी मांगते हैं तो ये चौंकाता है. ये किस्सा तब का है, जब द्रोण फ़िल्म के म्यूज़िक लॉन्च के वक़्त जया बच्चन ने कहा था- हम यूपी के लोग हैं, हमें हिंदी में बात करना चाहिए, महाराष्ट्र के लोग हमें माफ़ कर दें.


मराठी का झंडा उठाए घूम रहे राज ठाकरे ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई. संबंध बचाए रखने और विवाद ख़त्म करने को अमिताभ बच्चन अपनी पत्नी की तरफ सेमाफी मांगते हैं. हिंदी के स्टार कवि रहे हरिवंश राय का बेटा हिंदी के लिए माफी मांगता है...

और कई मौकों पर बिना रीढ़ को सीधी करे दिखते हैं तो इस 'जलसे' को अपने आगे देख रहा मेरा मन 'प्रतीक्षा' नहीं करना चाहता.

अमिताभ फ़िल्मों के किरदारों को ज़िंदा करते-करते अपने किरदार को न खो दें. इस उम्मीद में मन अमिताभ बच्चन की आवाज़ में पिंक फ़िल्म में गाई कविता 'सदी के महानायक' को सुनाना चाहता है,

'तू खुद की खोज में निकल, तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है
चरित्र जब पवित्र है तो क्यों है ये दशा तेरी
ये पापियों को हक नहीं कि ले परीक्षा तेरी
तू खुद की खोज में निकल...तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है.'

टिप्पणियाँ

  1. शुक्रिया इस लेख को लिखने के लिए!

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  2. पनामा घोटाले को खोज लें, महानायक का नाम मिलेगा
    टैक्स न चुकाने के भी पुराने चैंपियन हैं साहब

    इनके करोड़ों के टैक्स की, देश को भी तलाश है

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