सेक्रेड गेम्स: सरताज, गगनदीप के बिना ये दुनिया


एक अच्छा आर्ट पीस शायद वो है, जिसकी कई रीडिंग्स हों.

यानी हर देखने वाला अपने हिसाब से देखे और अपनी-अपनी कहानी फिट करे. 'सबका लाइफ धीरे-धीरे सामने आने लगे.'

जैसे- सूखे पेड़ के नीचे पौधे बिक रहे थे. ऐसे किसी भी दृश्य के कई अर्थ हो सकते हैं.

सेक्रेड गेम्स-2 ऐसे ही 'आर्ट पीस' का बेस्ट एग्जाम्पल लग रहा है. एक दृश्य और कई अर्थ. इन अर्थों को समझने का काम लोगों का था. कुछ समझे और कुछ नहीं.

इन अर्थों को रिलीज़ के फ़ौरन बाद लिखने से स्पॉइलर और दूसरे के अर्थ में अपना अर्थ ठूसने का ख़तरा था. दुर्घटना से देर भली.

लिहाज़ा...


मुस्लिम युवक पहले कहां पाए जाते थे, नहीं मालूम. लेकिन अब ये दो शब्द ख़बरों में जब वाक्य बनते हैं तो ''उठाए गए, शक के घेरे में, भीड़ ने पीटा'' जैसे शब्दों के साथ पाए जाते हैं.

साल 2018. जगह नैनीताल का मंदिर.  प्यार करने वाला एक जोड़ा. लड़की हिंदू, लड़का मुसलमान. फिर आती है भगवा गमछा धरे भीड़. मुसलमान लड़के को पिटाई शुरू होती है.

''हिंदू लड़की के साथ घूमता है. मारो इसे. मारो...'' 

लिंचिंग प्रक्रिया अपने पहले चरण में थी कि तभी वहां एक सिख नौजवान पहुंचता है.

उत्तराखंड पुलिस में सब-इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह. लंबा चौड़ा असली वाली 56 इंच की छाती लिए. गगनदीप भीड़ से हटाकर उस पिट रहे लड़के को अपने हाथों के कवच से ढकता है.

भीड़ गगन को भी पीटने की कोशिश करती है. लेकिन हाइट मैटर्स. भीड़ शोर मचाती है- मारो इस #$ को मारो, पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद, छोड़ दे इसे *****&$

लेकिन गगनदीप सिंह उस मुसलमान लड़के को बचाने में सफल रहते हैं.

बदले में क्या मिलता है? गगनदीप सिंह को कुछ दिन अंडरग्राउंड होना पड़ता है. परिवार को धमकियां और न जाने क्या-क्या?



पुलिस डिपार्टमेंट से मिले सम्मान के अलावा कभी सुनने को नहीं मिला कि गगनदीप को दिलेरी के लिए दिल्ली बुलाकर सम्मानित किया गया हो. डिजिटल इंडिया की बात करने वालों ने इस वायरल दिलेर पर एक ट्वीट तक नहीं किया था.

जब कुछ दिनों के लिए गगनदीप अंडरग्राउंड हुए, तब  वॉटस ऐप स्टेटस में लिख गए- ''मैं किसी से बेहतर करूं, क्या फर्क पड़ता है..! मैं 'किसी का' बेहतर करूं...बहुत फ़र्क़ पड़ता है...!''

ऐसा ही बेहतर करने की चाह एक दूसरे सिख ने 'सेक्रेड गेम्स' में दिखाई. यहीं से सेक्रेड गेम्स लिखने वालों का 'आर्ट वर्क' शुरू होता है. या संभव है कि ये बस एक रीडिंग हो. पर इस रीडिंग या आर्ट वर्क का नतीजा ये रहा कि रील पर रियल दिखा.

बिना किसी का नाम लिए सबसे बेहतरीन कटाक्ष और संभवत: सेक्रेड गेम्स 2 के सबसे ताकतवर सीन की बुनियाद.

एक मुसलमान पूछता है,  'क्या चूतिए हैं हम. सैर सपाटे के लिए उठाके लाए हैं तुझे?'

दूसरा मुसलमान जवाब देता है, 'मुसलमान को उठाने के लिए कोई वजह चाहिए आपको?'

सीन में दोनों मुसलमानों की बात एक सिख देखता सुनता है. इस वजह को पैदा करने वाले सीन में नहीं दिखते हैं. सिखों ने कितना कुछ देखा है?

हिंदू-मुसलमान की लड़ाई में सिख...

बँटवारे के वक़्त अपनी बच्चियों का बलात्कार, मुसलमान युवकों से जबरन शादी. बदले की आग में अपने हाथों में कड़े के साथ तलवारें. कितने सारे सिख और कितने सारे मुसलमानों के बीच दोनों मुल्क़ों में कितने ही रिश्ते जाने-अनजाने पल रहे होंगे.


रैडिकल होती ताक़तों के बीच शाहिद ख़ान जैसों की मांएं और सरताज सिंह जैसों की मौसियां कभी नहीं समझ पाएंगी कि वो कबका अपने स्वर्ण मंदिरों को खो चुकी होंगी.

क्योंकि जब वो जबरन बँटवारे के वक़्त उठाई गईं थीं, धर्म तब और अब में ज़्यादा बदला नहीं है.

'पता लगाओ... इसके घर में किसी को उठाया है हमने.'

साद. हल्की उम्र का लड़का. धर्म के खेलों से दूर उसे क्रिकेट खेलना पसंद था. मैदान पर हुई लड़ाई तो उसका हुनर मुसलमान होने के नीचे दब गया. साद को पुलिस नहीं उठाती है. धर्म उठाता है.

धर्म जो तैयार खड़ा है और पुलिस कॉन्स्टेबल काटेकर के बेटे रोहित जैसों के गंजे सिर पर नाच रहा है.  पिता की चिता को आग दे चुके ये मुलायम हाथ अब धर्म के यज्ञ में हाथ सेक रहा है. जान लेती भीड़ किस स्तर से तैयार हो रही है, इसका बेजोड़ नमूना रोहित.

साद को इसी धर्म की आग सेक रही भीड़ जजमेंट सुनाने के लिए बाहर निकालती है. पीटते हुए लिंचिंग प्रक्रिया अपने शुरुआती चरण में पहुंचती है.



साद पीटा जा रहा होता है. सिख पुलिसवाले को पता चलता है. वो बचाने की कोशिश करता है. लेकिन पर्दे की भीड़ ज़्यादा ख़तरनाक थी और बचाने वाला सिख अपने नशों में डूबा हुआ.

नतीजा- झगड़े की जड़ रही गेंद साद को लहूलुहान करके सरताज के पाले में आ जाती है. सरताज गगनदीप सिंह नहीं हो पाता है. लेकिन वो भी आश्रम जाकर एक तरह से अंडरग्राउंड हो जाता है. जैसे गगनदीप सिंह हुआ था.

साद की लाश और सरताज सिंह की आंखों को मिलना नैनीताल वाले गगनदीप सिंह जैसी हक़ीक़तों को आपकी आंखों में डालने जैसा है.

ये दुनिया ऐसे ही सरताज और गगनदीप सिंहों से भरी होनी चाहिए. ताकि 'कुछ तो कहानी छोड़ जा, कुछ तो निशानी छोड़ जा कौन कहे इस ओर, तू फिर आए न आए.'

असल ज़िंदगी में गगनदीप सिंह जैसे लोग कम हैं और जो हैं वो देर से आते हैं.

'इस दुनिया में बचाने लायक बचा ही क्या है सरताज?'

रजनीश (नॉट ओशो) मुझसे इस सीन पर हुई बातचीत के दौरान कहते हैं, 'इस दुनिया में जो बचाने लायक बचा था, सरताज उसी को बचा रहा था.'



साद की लिंचिंग के अलग सीन में भीड़ के हाथों मरा एक मुसलमान है. बैकग्राउंड में भागती भीड़ और लिंचिंग के बाद आए पुलिसवाले दौड़ते दिखते हैं.

DISCLAIMER:  '... पात्रों का हकीकत से नाता महज संयोग है...'  क्या वाक़ई? 

सेक्रेड गेम्स-2 वालों ने जाने या अनजाने में गगनदीप सिंह वाले दृश्य को पर्दे पर उतार दिया है. बिना किसी का नाम लिए, सरकार या धर्म पर प्रहार किए तीखा कटाक्ष.

पर इतनी रीडिंग करे कौन? इंडिया में भीड़ के पास जान से मारने के लिए वक़्त है लेकिन पढ़ने और समझने के लिए कतई वक़्त नहीं है.

'द हिंदू' बहुत अच्छा अख़बार है. लेकिन इस अख़बार पर मैंने कभी किसी को समोसे रखकर खाते हुए नहीं देखा. थोड़ा खुलकर खेलना मांगता है, जैसे राजीव, इंदिरा गांधी, अमरीका के दो अंग विशेष का खुलकर नाम लिया वैसे ही. डरना काहे का?

'अरे बेबी आएंगे सीना तानके तुम्हारी अइसी तइसी...बहुत हुआ सम्मान...'

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