सुषमा स्वराज जी, मैंने वादा पूरा किया...



बारिश इतनी तेज़ थी कि ऑटो के पर्दे पानी रोकने की बजाय सिर्फ़ फड़फड़ाए जा रहे थे. ऑटो के भीतर बैठकर भी हम लोग भीग चुके थे. दिल्ली के एक बंगले के बाहर खड़े जवान से कहा- मैडमजी से मिलना है.

बंगले के अंदर जाने के लिए दो ही रास्ते थे. मौत से लड़ रहे साथ गए शख्स की हालत और भीगने से बचे अस्पताल के कागज.  बंदूक लिए जवान ने औपचारिकता भरी निगाह से सिर्फ़ कागज को देखना चुना और इंसानों को अंदर जाने दिया.

अंदर बड़े कमरे में लोगों की भीड़ थी. सबका एक नंबर था. दो या तीन घंटे से पहले किसी का नंबर नहीं आ रहा था. वहां बैठे किसी भी दूसरे इंसान से कहीं ज़्यादा ज़रूरत या इमरजेंसी हमारे साथ गए शख़्स के साथ थी. कैंसर की आख़िरी स्टेज और इलाज के पैसे नहीं.  एम्स में भर्ती करना और इलाज... दोनों मुश्किल था.

इंतज़ार कर रहे लोगों की कतार को तोड़कर हमसे कहा गया- चलिए आप लोग पहले चलिए.

उस रोज़ शायद ज़िंदगी में पहली बार महसूस किया था कि एसी की ठंडक क्या चीज़ होती है. हर कमरे की छत पर पंखा नहीं होता. कमरे में एक औरत बैठी हुईं थीं. माथे पर खूब बड़ी बिंदी लगाए, गोरी सी, आंखों के नीचे हल्का कालापन लिए सुषमा स्वराज. तब की स्वास्थ्य मंत्री.

साल 2003 था. स्कूल, घर में सिखाई जा रही तमीज़ उफान पर थी. लिहाज़ा मैंने टेबल के नीचे से घुसकर मैंने सुषमा के पैर छू लिए. हँसते हुए उन्होंने हाथ पकड़कर टेबल के नीचे से अपनी तरफ मुझे खींच लिया. क्या नाम है तुम्हारा? इस सवाल का जवाब स्कूल में रटाई इंग्लिश में देता हूं My name is Vikas. तो वो कहती हैं- वेरी गुड, खूब पढ़ो लिखो.



मेरे साथ बैठे लोगों से शायद वो माफ़ी मांगते हुए कहती हैं, आपको परेशानी हुई, अब चिंता मत करो... एम्स जाकर मेरा नाम लेकर उनसे मिल लो...दिक्कत नहीं होगी.

दिक्कत कम भी हुईं. लेकिन आख़िरी स्टेज..आख़िरी ही साबित हुई. जिस एम्स में मैं पहली बार वाया सुषमा स्वराज गया था, आज उसी एम्स से सुषमा स्वराज को जाते हुए देखा.

बीते सालों में बीजेपी में कोई वैसे पसंद नहीं आया. सुषमा हिंदी में बोलतीं तो देखकर लगता कि एक दिन अपुन भी संयुक्त राष्ट्र में हिंदी इच बोलेगा. कई बार अजीब भी लगा कि जब-जब बीजेपी का क्रूर चेहरा आया तो अक्सर विरोध करने वाली सुषमा क्यों खुलकर कुछ नहीं बोलीं? पर शायद रही ही होंगी अपनी वजहें. कोई यूं ही कहां 'बेवफा' होता है.

हाल ही में जिस अपार्टमेंट में सुषमा शिफ्ट हुईं थीं. कुछ दिन पहले आई उसकी तस्वीरों में दिल्ली कितनी हरी भरी दिखती थी. आज जब उसी अपार्टमेंट में सुषमा का पार्थिव शरीर रखा था तो खिड़की से हरियाली नहीं, सूना आसमान दिख रहा था. आज अभी और अगली कितनी ही सुबहों में स्वराज कौशल को वो खिड़की कितनी चुभेगी. शीशे पर चिपकी रह गई कोई बड़ी बिंदी स्वराज को देखकर अपनी सुषमा को खोज रही होगी.

सुषमाजी ने मुझसे कहा था- खूब पढ़ो लिखो.

सुषमा के निधन के बाद ख़बरों को लिखते हुए मैंने वो बात आज थोड़ी सी मान ली. ये सब लिखकर उस बात को थोड़ा सा और मान रहा हूं.

मन है कि एक ट्वीट करूं. ''डियर @सुषमा_स्वराज, इस दुनिया में फँसा महसूस कर रहा हूं...प्लीज़ हेल्प.''

शायद सुषमा ज़िंदा हो जाएं!

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