अनुराग कश्यप: किधर हैं संस्कार?


''एक लड़का पेड़ के नीचे खड़े होकर रोज़ इमली तोड़ने की कोशिश करता दिखता. लड़के का निशाना हर बार काफ़ी दूर रहता. लोग देखकर हँसते. एक दिन वो पत्थर जाकर उस लड़के के लगता है, जो उसे परेशान करता था. बाद में पता चला कि ये प्रैक्टिस कर रहा था कि कैसे उस लड़के को पत्थर मारे और लोगों को लगे कि बेचारा ये तो इमली तोड़ रहा था.''

एक स्कूली बच्चे से ऐसी कहानियां लिखना 'अपेक्षित' नहीं था. इसलिए कहानियां छपी नहीं. नतीजा ये रहा कि बच्चे ने कहानियां दिखानी बंद कर दीं. बड़ा हुआ तो और कहानियां लिखनी शुरू कीं. हाथ से फटाफट 40-50 पन्ने लिख देता.

कुछ कहानियों में नाम मिला और कुछ में सिर्फ़ पैसे. सीरियल, फ़िल्में लिखीं. फिर एक ऐसे नाम से फ़िल्म बनाने की सोची, जिस टाइटल की फ़िल्म को 2020 में ऑस्कर मिला.  दोनों फ़िल्मों में फ़र्क़ ये था कि इस नए नवेले निर्देशक ने ये सोचा कि पैरासाइट नाम रखा तो लोग शायद समझेंगे नहीं. इसलिए पैरासाइट टाइटल बदलकर हुआ पांच. लेकिन लोग तब भी नहीं समझे. 'पांच' फ़िल्म आज तक सिनेमाघरों में रिलीज़ नहीं हुई.

इमली तोड़ते लड़के की कहानी लिखने वाले उस बच्चे को अब सब अनुराग कश्यप के नाम से जानते हैं. जिनकी सुनाई कहानियां कुछ लोग शायद अब भी पूरी नहीं समझ पा रहे हैं. लेकिन इस बात से बेफिक्र अनुराग लगातार कैमरा, लाइट, एक्शन भी कह रहे हैं और 'परेशान करने वाली बातों' पर रिएक्शन भी दे रहे हैं.

डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने अपने कुछ ऐसे ही एक्शन और रिएक्शन पर मैंने बात की.  ट्रोलिंग, मीडिया, नेहरू- इंदिरा, पीएम मोदी- शाह से लेकर फ़िल्मों की कहानियों और टिकटॉक की हैरानियों तक.


क्रेडिट: गेटी इमेजेस

कितने आत्मनिर्भर हुए अनुराग कश्यप?

श्रीलाल बचपन से अनुराग के साथ रहे. घर संभालते, खाना बनाकर खिलाते. लेकिन लॉकडाउन में श्रीलाल अपने घर चले गए.


'तोके अंगुली खाना खाएके चाही तो हम खिला देंगे...' गैंग्स ऑफ वासेपुर फ़िल्म की नगमा (ऋचा चड्ढा) का ये डायलॉग अनुराग कश्यप की इन दिनों की दिनचर्या है.

अनुराग बताते हैं, ''सालों से श्रीलाल की आदत थी. शुरू में बर्तन धोना, खाना बनाना शुरू किया. एक-डेढ़ महीने तक ठीक था. पहले बड़ा मज़ा आ रहा था. लेकिन अब सब ढीला हो गया है. लॉकडाउन ने आत्मनिर्भर बनाया था. लेकिन अब मैं आत्मनिर्भर होते-होते थक गया हूं.''


अनुराग जब आत्मनिर्भर होते-होते थक रहे थे. ठीक उसी बीच नोटबंदी के इर्द-गिर्द की कहानी लिए अनुराग कश्यप की नई फ़िल्म चोक्ड नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई. तारीफ़, आलोचना दोनों हुईं.

इस फ़िल्म की कहानी में घुसने से पहले उस पैटर्न की बात करते हैं, जिससे अनुराग कश्यप की मीडिया से नाराज़गी पता चलती है.


मीडिया से अनुराग कश्यप को दिक़्क़त क्या है?

गैंग्स ऑफ वासेपुर में 'रिश्तों के भी रूप बदलते हैं, नए-नए सांचों में ढलते हैं' सीरियल सॉन्ग के फ़ौरन बाद फायरिंग शुरू होने वाले सीन से लेकर मुक्काबाज़ फ़िल्म में मिलन की रात के बाद टीवी से रामदेव की आती आवाज़, 'ये आसन कई बार करें' तक.

अनुराग की फ़िल्मों में बैकग्राउंड में चल रहे टीवी से आती आवाज़ें भी बुनी होती हैं.

चोक्ड फ़िल्म में भी आपको ऐसी ही आवाज़ें सुनाई देती हैं.

''मशरूम खाइए, नरेंद्र मोदी बन जाइए. जी हां चौंकने की आवश्यकता नहीं. प्रधानमंत्री मोदी की चुस्ती फुर्ती के पीछे मशरूम...''

''नक्सलियों की नाक में दम हो गया है. 500-1000 नोट बंद किए जाने से इन लोगों की प्लानिंग बिगड़ गई है.''

फ़िल्म के एक सीन में नए नोट लेने गए शख़्स का पूछना- नोट में माइक्रोचिप है क्या?

ये आवाज़ें शायद आपने भी न्यूज़ चैनलों पर नोटबंदी के बाद सुनी होंगी. आख़िर अनुराग कश्यप के निशाने पर मीडिया क्यों?

अनुराग बचपन में लौटते हैं, ''जब हम बड़े हो रहे थे तो हमारे पिताजी कहते कि अख़बार पढ़ो, जानकारी होनी चाहिए कि दुनिया में क्या हो रहा है. छपे हुए शब्द का बहुत महत्व रहा है, सच मानते थे. फ़िल्मों में भी पत्रकारों को ऐसे दिखाते थे कि वो ग़रीब होता है, सत्य के मार्ग पर झोला लटकाए कुर्ता पायजामा पहने हुए चलता है.  फिर आप बड़े हो जाते हो और पता चलता है कि अख़बारों में जो छपा हुआ है, वो सच नहीं है.''

''जहां से विज्ञापन ज़्यादा आता है वो कई बार ख़बरें भी कंट्रोल कर रहा होता है. फिर थोड़े और बड़े हुए तो पता चला कि फ़िल्म कंपनियां, मीडिया कुछ पूंजीपतियों के हाथ में हैं. फिर पिछले पांच या छह साल में ये देखा कि जो संपादक होते हैं, वो निकाले जाने लगे. जो अपनी बात कहना चाह रहा है, जो ख़ुद पर संपादकीय नियंत्रण नहीं चाह रहा है वो निकल जाता है. फिर आप पाते हैं कि एक तरफ़ा ख़बरें ही आ रही हैं. ये सब इतना ज़्यादा कंट्रोल होने लगा है कि मुझे दिक़्क़त होने लगी है कि सत्य क्या है? आप सच खोजने कहां जाओगे?''




फ़िल्म बनाने से पहले क़ानून, संविधान की पढ़ाई

अनुराग कश्यप जिस सच की बात कर रहे हैं, एक बार वो भी झूठ का शिकार हुए थे. कुछ वक़्त पहले अनुराग कश्यप ने हिटलर के भाषण का गलत सबटाइटल वाला वीडियो शेयर किया था. हालांकि ये ट्वीट कुछ देर बाद अनुराग ने डिलीट भी कर दिया था.

अनुराग कहते हैं, ''एक-दो बार ख़बर पढ़ी. ग़लती से री-ट्वीट कर दी. पता चला कि वो भी ग़लत है. ग़लत ख़बर एक तरफ़ से नहीं, हर तरफ़ से आती है. प्रोपेगेंडा के जवाब में भी प्रोपेगेंडा ही चलता है. गिने चुने ही लोग हैं, जो आज भी पत्रकार होने की मर्यादा निभा रहे हैं. सच के लिए लड़ते हुए उनकी क्या हालत है, ये पता चलता है. मेरी शिकायत यही है कि जो मानते हुए बड़े हुए थे, आज पता चलता है कि आदर्शों की कोई वैल्यू ही नहीं है.''

''सच बोलने को बहादुरी माना जाने लगा है. लोग बोलते हैं कि इतनी बहादुरी कहां से आती है? पहले कोई नहीं बोलता था कि सच बोलने के लिए बहादुरी चाहिए. सच बोलने के लिए सिर्फ़ नीयत चाहिए होती है. लेकिन अब लगता है कि अगर आपने पांच से ज़्यादा सच बोल दिए तो आपको परमवीर चक्र मिलना चाहिए. हम लोग देश में ऐसे मुकाम पर पहुंच गए हैं. आदमी चाहता ही नहीं कि किसी को कुछ पता चले. ये कुछ चंद लोग हमारी अर्थव्यवस्था, ख़बरें, सरकार, सिस्टम....सब कंट्रोल करते हैं.''



अनुराग ने कहा, ''ये लोग चाहते हैं कि हम लोग हिंदू मुसलमान में उलझे रहें. फिर चाहे प्रवासियों का पलायन हो, कोविड-19 हो. समय भी ऐसा है कि आप सब कुछ कह भी नहीं सकते. क्योंकि ये सिस्टम ऐसा है कि आपको कुछ कहने ही नहीं देगा. आपको तरीके खोजने पड़ते हैं. क़ानून, संविधान पढ़ना पड़ता है.''


अनुराग कश्यप की पहली फ़िल्म पांच, ब्लैक फ्राइडे से लेकर उड़ता पंजाब प्रोड्यूस करने तक. कभी सेंसर बोर्ड तो कभी कोर्ट. अनुराग का क़ानून पढ़ना कई बार काम भी आया.


अनुराग बताते हैं, ''मैं तो फ़िल्म बनाने से पहले संविधान, कानून पढ़ने को कहता हूं. जिस चीज़ पर हम लड़ सकें, फ़िल्म में उतना ही आएगा. क्योंकि सिनेमा इतना सस्ता माध्यम नहीं है. पैसे और बहुत सारे लोग लगते हैं. ऐसे में अगर मुझे अपनी बात कहनी है तो क़ानून के अंतर्गत ही कहनी पड़ेगी. इसीलिए हमारी हर फ़िल्म कोर्ट तक पहुंचती है. आख़िर में जीत जाते हैं लेकिन रास्ता आसान नहीं है.''


निर्देशक, जिसे नायक पसंद नहीं?

चोक्ड फ़िल्म से एक सीन शूटिंग के वक़्त ही काट दिया गया था. इस सीन में दो लोग आपस में ये बात कर रहे थे कि पीएम मोदी ने अपना घर तक छोड़ दिया. दूसरा जवाब देता है- इंदिरा गांधी ने भी तो घर त्याग दिया था.

अनुराग ने कहा, ''प्रधानमंत्री को देश ने नायक बना रखा है. नायक बनाने के चक्कर में बहुत सारी कहानियां हैं कि उन्होंने घर त्याग दिया. ऐसी कहानियों में जाकर आप किसी आदमी की माइथोलॉजी बना रहे हो. मैं ख़ुद के बारे में विकिपीडिया पर पढ़ता हूं कि चंद दिन सड़कों पर गुज़ार दिए तो लोग उसे ऐसे बताएंगे कि ये आदमी सड़कों पर रहा. माइथोलॉजी का मतलब ही ये है कि ये सच नहीं है. लोग ये बात समझते नहीं हैं कि ये कहानी है जो सच के इर्द-गिर्द गढ़ी हुई है. मैंने अपने संघर्ष के बारे में माइथोलॉजी पढ़ी है. मुझे संघर्ष करके बहुत मज़ा आया है. मैंने स्ट्रगल में वो किया, जो मैं करना चाहता  था. स्ट्रगल मेरी चॉइस थी. लेकिन लोग बड़े वैसे बात करते हैं. यही चीज़ पीएम मोदी के साथ हैं कि उन्होंने ये किया, वो किया. ऐसे खोजने निकलेंगे तो सबकी कहानियां मिल जाएँगी.''

फ़िल्म के उस सीन पर अनुराग लौटते हैं, ''हमने इसी (माइथोलॉजी) के आस-पास वो सीन गढ़ा था. फिर लगा कि फ़िल्म की किरदार सरिता (सयामी खेर) को तो बस गाने का शौक था. वो क्यों राजनीति की बात करेगी. फिर फ़िल्म के लेखक निहित भवे ने कहा कि सरिता अनुराग कश्यप जैसी साउंड कर रही है.''

''फ़िल्म के लिए ईमानदार रहना भी बहुत ज़रूरी है. जिसमें आपको अपनी कहानी को साइड रखकर फ़िल्म कहनी है. कटाक्ष करना है तो वो मैं ट्विटर पर करता हूं और फ़िल्मों में भी ला सकता हूं. ख़तरनाक से ख़तरनाक कटाक्ष कर सकता हूं. लेकिन तब मैं प्रोपेगेंडा के जवाब में भी प्रोपेगेंडा कर रहा हूं. कुछ लोग निराश हुए कि नोटबंदी को ढंग से दिखाया नहीं. अब हम डॉक्यूमेंट्री थोड़ी बना रहे हैं. ये एक किरदार की कहानी है और जितनी है, उतनी ही कहेंगे.''


नोटबंदी की हक़ीक़त और चोक्ड फ़िल्म

गुलाल फ़िल्म के ओपनिंग सीन या गैंग्स ऑफ वासेपुर में झारखंड बनने की कहानी सुनाते पीयूष मिश्रा की बैकग्राउंड आवाज़ को याद कीजिए. या फिर मुक्काबाज़ के सीन में लिंचिंग करते लोग और भारत माता की जय के नारे.

अनुराग कश्यप अपनी फ़िल्म की कहानी कहते हुए किसी टाइम स्पेस में क्या घटा, उसे साफ़ और सच्चाई के साथ फ़िल्मों में दिखाते रहे हैं.

नोटबंदी लाए जाने को लेकर चरमपंथियों की फंडिंग रोकने और काले धन से जुड़े कई दावे किए गए थे.

लेकिन चोक्ड फ़िल्म में नोटबंदी से आम आदमी को हुई तकलीफ़ों को हल्के से छुआ गया है. जैसे एक सीन में बैंक में गई बुजुर्ग महिला से ये कहना, ''बैंक में पैसे मिलते हैं, सिम्पेथी नहीं...उनके हाथ जोड़िए, जिनको वोट दिया था.''


अनुराग फ़िल्म में नोटबंदी की हकीकत को दिखाने में बरती गई नरमी पर कहते हैं, ''फ़िल्म का काम वो नहीं है जो पत्रकारिता का काम है. नोटबंदी के भयावह रूप की डिटेल्स दिखाना पत्रकारिता का काम है.''

RBI की 2016-17 रिपोर्ट के मुताबिक़, 99 फ़ीसदी पुराने नोट बैंकिंग सिस्टम में लौट आए. 15 लाख 31 हज़ार करोड़ रुपये बैंकिंग सिस्टम में आ गए. नए नोटों की छपाई में आठ हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च हुए. CPHS के मुताबिक़, 2016-2017 के अंतिम तिमाही में क़रीब 15 लाख नौकरियां गईं. सरकार ने संसद में बताया था,  ''जनवरी से जुलाई, 2017 के बीच कश्मीर में 184 आतंकवादी हमले हुए, जो 2016 में इसी दौरान हुए 155 आतंकवादी हमले की तुलना में कहीं ज़्यादा थे.'' कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने आरोप लगाया था, "नोटबंदी की वजह से 100 से ज़्यादा लोगों की जानें गईं.''

अनुराग बोले,  ''हम एक कहानी कह रहे हैं, उसके आस-पास जो है बस उतना ही कहेंगे. हमने नोटबंदी के बारे में थोड़ा सा कहा लेकिन लोगों की यादें तो ताज़ा हो गईं. सिनेमा का काम है कि लोगों के अंदर एक भावना को जगाना. हमारी एक कहानी से अगर किसी को अपनी एक कहानी याद आ जाती है और उससे वो आगे के लिए सचेत हो जाते हैं तो हमारा काम वहां ख़त्म है.''


अनुराग कश्यप की फ़िल्मों की रीडिंग

'लक बाय चांस' फ़िल्म में ऋषि कपूर का किरदार उस सीन में मौजूद अनुराग कश्यप के किरदार से कहता है- ओए इंस्टीट्यूट, फेस्टिवल के लिए नहीं बना रहा हूं फ़िल्म.

अनुराग कश्यप की फ़िल्म बॉम्बे वेलवेट, सिरीज़ सेक्रेड गेम्स-2, चोक्ड में ऐसे कई सीन हैं, जिनकी अगर आप पढ़ना चाहें तो आपको काफ़ी कुछ मिल सकता है. लेकिन इनकी रीडिंग मुश्किल है.

साफ़ शब्दों में कहानी ना कहने से नुकसान तो फ़िल्म को ही होता है?

अनुराग जवाब देते हैं, ''नुकसान होता है, क्यों नहीं होता है. मैं अगर सब चीज़ साफ़-साफ़ शब्दों में लोगों को कहूं. ऐसा हुआ, ऐसा हुआ. वो फ़िल्म, कहानी नहीं रहती. भाषण हो जाता है. मुझे भाषण नहीं देना है. भाषण के साथ बात ये है कि आप एक टाइम, स्पेस में कह रहे हो, जब समय बदल जाता है तो उस भाषण की वैल्यू ख़त्म हो जाती है. हर चीज़ पर परिप्रेक्ष्य आपको 15-20 साल बाद ही मिलेगा. जब फासीवाद जर्मनी में आया था तब उनको लग रहा था कि कोई बढ़िया चीज़ हो रही है. लेकिन ये चीज़ उनको तब समझ आई, तब दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म हुआ. दिक़्क़त ये है कि आप या तो ऐसी फ़िल्म बनाते हैं जो वही लोग पसंद करते हैं जो पहले से ही बात जानते हैं. वो फ़िल्म ना भी देखें तो उनके पास उस बारे में दस गुणा ज़्यादा चीज़ें हैं. ''

''कहानियां इस तरह से कहनी चाहिए जो बारीकियां ना पकड़े और उनको उस चीज़ की यादें आ जाएं. फिर वो कहें कि हुआ इससे ज़्यादा था, ये हिस्सा नहीं दिखाया. तब मकसद पूरा होता है. आप आज कोई पुरानी फ़िल्म वही याद करते हैं, जो भाषणबाज़ी नहीं करती हैं. इंडिया में फ़िल्मों का एक ही मैसेज होता है. भला करोगे तो भला मिलेगा, बुरा करोगे तो बुरा मिलेगा. इससे दुनिया ने क्या सीखा? कुछ नहीं. ''


''हम लोग संस्कारों, परिवारिक मूल्यों की बात करते हैं. किधर हैं संस्कार और परिवारिक मूल्य? संस्कार को तो इस्तेमाल किया जाता है. हमें शुरू से बच्चों की तरह ट्रीट किया गया. जनता बच्ची है, उसे ये मत दिखाओ ये अडल्ट है. अरे भाई हमें अडल्ट होने दो न. 18 साल का होने से आदमी अडल्ट नहीं होता है. आदमी अडल्ट तब होता है जब वो ख़ुद के लिए सोचने लग जाए. आप चाहते हो कि दुनिया आपके मन की बात सुने, अपने मन की बात ना करे.''


पीएम मोदी, शाह के लिए कश्यप का अनुराग कम क्यों?

बीते कुछ वक़्त में अनुराग कश्यप पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के लिए कई ऐसे ट्वीट्स करते रहे हैं, जिन्हें शालीन नहीं कहा जा सकता.

क्या अनुराग कश्यप को नहीं लगता कि वो कई बार ज़्यादा कर देते हैं?

अनुराग कहते हैं, ''हां कभी-कभी लगता है कि ज़्यादा हो जाता है. लेकिन दिक़्क़त ये है कि मैं हमेशा इंग्लिश में ट्वीट करता था. मैंने हिंदी में ट्वीट करना ही इसलिए शुरू किया ताकि मैं उन लोगों तक पहुंचूं, जिनसे ज़्यादा अभद्र लोग मैंने आज तक ट्विटर पर नहीं देखे हैं. जब आप अपनी सोच को सच  और ईमानदारी के साथ कहते हो तो वो इतनी ज़ोर से लगता है कि आपको लगता है कि इस आदमी ने गाली दी. सच गाली हो गया है. मेरे ट्विटर पर आप एक गाली दिखा दो, जो मैंने इस्तेमाल की हो. मैंने जानवर बोला पर मैंने गाली नहीं इस्तेमाल की. लेकिन जवाब में गाली देने वाले लोग कह रहे हैं कि आपको ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.''

अनुराग कश्यप की फ़िल्मों में भी गालियां रहती हैं. ऐसा कहने वालों से अनुराग पूछते हैं, ''जो ये कहते हैं कि हमने गालियां गैंग्स ऑफ वासेपुर से सीखी हैं. भाई ये बताओ कि जब इतने साल आपने प्यार भरी फ़िल्में देखीं. आपने प्यार करना तो सीखा नहीं. लेकिन एक फ़िल्म से आपने गालियां सीख लीं?''


केंद्र सरकार के नोटबंदी से लेकर लॉकडाउन के फ़ैसले की तैयारियों पर भी अनुराग ने कटाक्ष किया.

अनुराग बोले, ''जिस दिन नोटबंदी का ऐलान हुआ और अगर आप मेरा ट्वीट ढूंढें तो मैं भी उन लोगों में से था, जिसने ये कहा था कि ये ब्लैक मनी निकालने का अच्छा तरीका है.''

''क्योंकि मेरा ये भरोसा था कि अगर ये किया है तो इसकी प्लानिंग दो साल से चल रही होगी. नए नोट वगैरह सब तैयार होंगे, तब जाकर इन्होंने ये ऐलान किया है. यही तरीका होता है. हम लोग जब फ़िल्म का ट्रेलर लॉन्च करते हैं, तब लॉन्च करते हैं जब फ़िल्म तैयार होती है. यहां उल्टा ही था. आपने फ़िल्म लॉन्च कर दी और तैयार ही नहीं थी वो. न साउंड तैयार, न पिच्चर तैयार. लोग स्क्रीन में जाकर बैठे हुए हैं और सामने लिखा आ रहा है- रुकावट के लिए खेद है. ये है नोटबंदी.''

अनुराग ने कहा, ''हां मेरी भाषा शालीन नहीं है. लेकिन आप शालीन भाषा का इस्तेमाल उनके लिए करते हो, जो शालीन हों. जब आप देखते हो कि देश के गृहमंत्री ऐसे बात करते हों जैसे वो भेड़ बकरी हांक रहे हों. अमित शाह या हमारे पीएम की भाषा देखिए उन लोगों के बारे में जिन्होंने हमारा संविधान बनाया, जिन्होंने हमारे देश को आज़ादी दी. जो हमारे पूर्व पीएम, राष्ट्रपति रहे हैं, उनके बारे में ये लोग किस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. मैं इन्हीं की भाषा में इनसे बात करता हूं. हिंदी में जब बात करता हूं तो ये बात वहां तक पहुंचती है जहां तक ये लोग नहीं चाहते कि पहुंचे.''


दूसरी सरकारों में अनुराग कश्यप कैसे थे?

अनुराग कश्यप की कई फ़िल्मों ने रुकावट झेली. साथ ही अनुराग कश्यप की फ़िल्मों, सिरीज़ में कांग्रेस की भी स्पष्ट तौर पर आलोचना की गई है.

 सेक्रेड गेम्स में राजीव गांधी को लेकर विवाद भी हुआ था. गुलाल में इंदिरा गांधी के 'गरीबी हटाओ' नारे पर भी कटाक्ष था.

अनुराग कहते हैं, ''मैं पहले भी सरकारों से लड़ता रहा हूं. पर पहले कभी किसी ने डर की बात नहीं की. कभी किसी ने ये नहीं बोला कि तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. मेरी तो पहली तीन फ़िल्में सेंसर में अटकीं. गुलाल जब रिलीज हुई तब सत्ता में  कांग्रेस थी. गुलाल के ओपनिंग सीन में कांग्रेस की आलोचना होती है. मुझे तो तब किसी सरकार ने कोई दिक़्क़त नहीं दी. मुझसे सेंसर बोर्ड में जवाब पूछे गए, मैंने दिए और फ़िल्म रिलीज़ हो गई. मैंने कभी इस तरह का माहौल फेस नहीं किया है. आप अगर किसी बात को ख़ारिज करते हैं तो अब उसे देशद्रोह मानते हैं.''

अनुराग ने कांग्रेस की बात की तो गैंग्स ऑफ वासेपुर के उस सीन का ज़िक्र ज़रूरी है, जिसमें रमाधीर सिंह अपने बेटे से कहता है- तुमसे ना हो पाएगा.

अनुराग से पूछा कि जिनके लिए आपने ये सीन लिखा था, क्या बीते दिनों उनसे कुछ हो पाया?

जवाब मिला, ''बीच-बीच में आते रहते हैं वो. अभी दिख रहा है. लग रहा है कि देश में विपक्ष है. थोड़ा बोलना शुरू किया है, थोड़ा बाहर आना शुरू किया है. छह महीने पहले तक लगता था कि ये लोग आधे वक़्त छुट्टी ही मनाते हैं. सिर्फ़ चुनाव के वक़्त जागते हैं. एक टाइम के बाद आदमी थक जाता है. मैंने वो जामिया वाला वीडियो देखा तो ट्विटर पर लौटकर आया. बहुत छोटी बात है कि अगर आपके पास इतना बहुमत है तो आप भला करना चाहें तो क्या नहीं कर सकते? आप अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों को सुनना नहीं चाहते. ये तानाशाही के शुरुआती लक्षण हैं.''


''हम लोगों के साथ दिक़्क़त ये है कि हम कोई बात कह रहे हैं तो पॉलिटिक्ल पार्टी भी आकर जुड़ने को कहती हैं. लेकिन मैं हाथ जोड़ लेता हूं.''

वो तीसरे अनुराग कश्यप...

फ़िल्ममेकर अनुराग कश्यप को आप जानते हैं. दूसरा ट्विटर पर सक्रिय अनुराग कश्यप को भी आप पहचानते ही होंगे.

लेकिन एक तीसरे अनुराग कश्यप हैं, जो फ़िल्मों, राजनीति से दूर टिकटॉक के वीडियो में बिटिया आलिया के साथ नज़र आते हैं.

अनुराग कहते हैं, ''उन वीडियो में जो दिखता है वो अनुराग कश्यप नहीं, वो एक बाप है. वो एक बाप है जो बेटी के हाथ मजबूर है. हर आदमी की एक कमज़ोरी होती है. मेरी वही है. मेरी बेटी मुझसे कुछ भी करवा सकती है. आपका परिवार आपकी कमज़ोरी होती है.''

अनुराग कमज़ोरी का ज़िक्र करते हैं तो साथ ही अपनी ताकत भी बताते हैं, ''एक वोट ही हमारी ताकत है. समय ही सबसे बलवान चीज़ है.''

गुलाल फ़िल्म के सीन में दुके बना ने कहा था, ''एक देशभक्त को अपने देश की रक्षा के लिए हमेशा सरकार के ख़िलाफ़ तैयार रहना चाहिए.''

अनुराग कश्यप ट्वीटेड...



(मेरा ये इंटरव्यू बीबीसी हिंदी पर पहले छपा है.)

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